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World Press Freedom Day- भारत में बढ़ रहा है पत्रकारों की हत्या का सिलसिला!


World Press Freedom Day- भारत में बढ़ रहा है पत्रकारों की हत्या का सिलसिला!
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भारत में बदलते जमाने के साथ साथ  पत्रकारीता ने भी अपना जमाना बदला है। कभी किसी जमाने में  सिर्फ रेडियों और अखबारों तक सिमित रहनेवाला पत्रकार अब हर गली और कुचे पर पहुंच गया है और उसकी सबसे बड़ी वजह है बदलते समय के साथ साथ बदलती तकवीक। रेडियों और अखबारों की दुनियां के साथ साथ अब भारत में रहनेवाले पत्रकार भी दूसरे देशों को तरह अब जमकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे है।  मोबाइल के इस जमाने में अब हर पत्रकार कलम की ताकत के साथ साथ वीडियों की भी ताकत दिखा रहा है। 


बदल रही है पत्रकारिता की तकनीक
लेकिन इसी भारत की एक और एसी तस्वीर हैं जो इससे काफी अलग है, जहां एक तरफ भारत में पत्रकारीता ने तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है तो वही दूसरी ओर प्रेस की स्वतंत्रता पर लगातार खतरा भी पैदा हुआ है। पिछलें कई सालों में इस देश में पत्रकार की हत्याएं कर दी गई है।  श्विक संगठन यूनेस्को ने ट्वीट कर लिखा- पत्रकारिता कोई अपराध नहीं है। बिना सुरक्षित पत्रकारिता के सुरक्षित सूचना हो नहीं सकती। बिना सूचना के कोई आजादी नहीं होती।

भारत तीन पायदान फिसला
 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की 180 मजबूत देशों की सूची में भारत तीन पायदान फिसलकर 136वें नंबर पर आ गया है। इससे पहले भारत 133वें स्थान पर था।  पूरी दुनिया में इस समय 193 पत्रकार जेल में हैं। भारत के पिछले सात सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो परिस्थिति चिंताजनक बनी हुई है। पिछलें कई सालों से भारत में पत्रकार की हत्याओं का सिलसिला बढ़ता जा रहा है।   साल 2012 में 74, 2013 में 73, 2014 में 61, 2015 में 73, 2016 में 48, 2017 में 46 और साल 2018 में अब तक 14 पत्रकारों ने काम के दौरान अपनी जान गंवाई है। यानी सात सालों में 389 पत्रकारों की जान केवल भारत में गई है।

बिजनस घरानों का दखल
मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ रहा है। मीडिया की आवाज को लोगों की आवाज माना जाता है।  लेकिन आज के दौर में इस मीडिया में भी बटवारा हो गया है। भारत में आज हालात इतने खराब हो गए है की मीडिया का एक धड़ा दूसरे धड़े की बूराई करता नजर आता है। कहा जाता है की मीडिया की आजादी के लिए सबसे जरुरी है की उसमें किसी का व्यवसायिक हित ना शामिल है , लेकिन ये इस देश का दुर्भाग्य है की देश के बड़े बड़े न्यूज चैनलों और अखबारों का मालिकाना हक व्यापारियों के पास है, जिनकी मुख्य कमाई उनके दूसरे व्यवसायिक क्षेत्रों पर निर्भर है।

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