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'बेस्ट' वेंटिलेटर पर, बचेगी?

बेस्ट का घाटा जिस तरह से बढ़ रहा है वह बंद हो सकती है.

'बेस्ट' वेंटिलेटर पर, बचेगी?
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क्या 'बेस्ट' बंद हो जाएगा? बेस्ट के आर्थिक हालत के सामने बीएमसी भी अब मजबूर नजर आने लगी है। बीएमसी कमिशनर अजोय मेहता ने जिस तरह से बेस्ट की स्थिति बताई है उससे तो यही लगता है कि 'बेस्ट' अब अपनी आखिरी सांसे गईं रही है। उन्होंने साफ-साफ़ कहा कि पिछले छह महीने से बेस्ट की आर्थिक स्थिति काफी नाजुक है। हालात बद से बदतर हो गए हैं। स्थिति यहाँ तक पहुंच गयी है कि बेस्ट के कर्मचारियों को बैंक से कर्ज लेकर वेतन देना पड़ रहा है। ईंधन के लिए भी पैसे नहीं हैं। मेहता के अनुसार बेस्ट सुधार के तमाम प्रयास निरर्थक ही साबित हुये हैं।

महंगाई भत्ते में कटौती

मेहता ने कहा, बेस्ट को बचाने के लिए जो सुधार बताये गए हैं सब करने पड़ेंगे। कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में भी कटौती करनी पड़ेगी, यह बात कर्मचारी संघटनों को भी समझना पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है कि आज परिस्थिति ख़राब है तो इसे बंद करना पड़ सकता है और कल स्थिति में सुधार होने पर फिर से सब ठीक हो जायेगा।

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बस प्राइवेट सेवा सरकारी

मेहता ने सुझाव देते हुए कहा कि प्रतियोगिता के इस ज़माने में बेस्ट में कई सुधार की जरूरत है। बेस्ट का निजीकरण होने का विरोध आप (नगरसेवक)ही करते हैं, लेकिन प्राइवेट बसों को किराए पर लेकर बेस्ट उसे चला सकती है। बेस्ट का इन बसों पर पूर्ण अधिकारी रहेगा। इन बसों में बेस्ट का ही ड्राइवर और कंडक्टर रहेगा। बसें भी बेस्ट के ही रंग में रहेगी। किराया भी बेस्ट तय करेगा। साथ ही बेस्ट के ऊपर बसों को खरीदने का उनके रखरखाव का और तेल के खर्चे का भार नहीं पड़ेगा। बेस्ट भी उबर और ओला जैसी पब्लिक ट्रासंपोर्ट को टक्कर देने लगेगी।

टिकट दर बढ़ाना समस्या का समाधान नहीं

घाटे से उबरने के लिए बेस्ट हर बार भाड़ा बढ़ा देती है। हमने स्पष्ट कर दिया है कि छोटी दूरी के लिए किराए में कोई बढ़ोतरी न की जाए, बड़ी दूरी की यात्रा के लिए ही इस विकल्प पर विचार हो, अन्यथा यात्रियों की संख्या कम होती चली जाएगी। उन्होंने कहा कि लगभग 85 फीसदी यात्री छोटी दुरी के होते हैं लेकिन टिकट महंगे होंगे तो वे शेयर रिक्शा या शेयर टैक्सी को प्राथमिकता देंगे।

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हर साल 1000 करोड़ का घाटा  

मेहता के अनुसार बेस्ट की आय 1200 से 1300 करोड़ रूपये वार्षिक है लेकिन उसका खर्चा 1600 करोड़ रूपये सालाना है। यानी आय से अधिक खर्चा है। 500 करोड़ रूपये का तो मात्र डीजल में ही खर्च होता है। बेस्ट को हर साल हजार करोड़ से लेकर 1200 करोड़ तक का घाटा सहन करना पड़ता है।

कैसे चलेगी बेस्ट?

मेहता ने सवाल उठाया कि वेतन देने के लिए बैंक ने बेस्ट को 150 करोड़ रूपये कर्ज देने से मना कर दिया है। डीजल खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं, तो बेस्ट चलेगी कैसे? उन्होंने स्पष्ट किया कि अगले 5 सालों में 10 हजार करोड़ रूपये खर्च करके भी बेस्ट की आर्थिक स्थिति नहीं सुधरने वाली है।इसीलिए सुधार के लिए जो सिफारिशें की गयीं हैं उनको अमल में लाना आवश्यक है। इस पर सभी को चर्चा करना होगा। 

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इस दौरान विरोधी पक्ष नेता रवि राजा ने कहा कि इस मुद्दे पर बीएमसी सभागृह को विचार करना चाहिए। सभागृह नेता यशवंत जाधव ने कहा कि बेस्ट के महाव्यवस्थापक को सरकार नियुक्त करती है, एक तरह से ये सरकार के लिए काम करते हैं। जाधव के इस कथन पर मौजूद राष्ट्रवादी काँग्रेस की राखी जाधव, अनिल पाटणकर, आशिष चेंबूरकर, प्रभाकर शिंदे सहित कई नगरसेवकों ने एक सुर में यह मांग की कि महाव्यवस्थापक की नियुक्ति सरकार द्वारा नहीं की जानी चाहिए।


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