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Interview: मुझे गालियों से कोई परहेज नहीं: मनोज बाजपेयी

वेब सीरीज के प्रमोशन के दौरान मनोज बाजपेयी ने मुंबई लाइव से खास मुलाकात की। इस मुलाकात में उन्होंने फिल्म, वेब सीरीज के अलावा निजी जिंदगी से जुड़े कई सावालों का बेबाकी के साथ जवाब दिया।

Interview: मुझे गालियों से कोई परहेज नहीं: मनोज बाजपेयी
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फिल्म ‘सत्या’ से लाइट में आए एक्टर मनोज बायपेयी आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने ‘सत्या’ के बाद ‘शूल’, ‘राजनीति’, ‘गैंग्स ऑफ वासेयपुर’ और ‘अलीगढ़’ जैसी तमाम फिल्मों में काम कर अपनी बेहतरीन अदाकारी का परिचय दिया है। मनोज बाजपेयी को दो बार नेशनल अवॉर्ड और पद्मश्री जैसे सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। टीवी, फिल्म्स और शॉर्ट फिल्म के बाद एक्टर ने अब वेब सीरीज की ओर भी कदम बढ़ा लिए हैं। एमेजॉन प्राइम पर 20 सितंबर से उनकी आगामी वेब सीरीज ‘द फैमिली मैन’ स्ट्रीमिंग के लिए तैयार है। अपनी पहली वेब सीरीज के प्रमोशन के दौरान मनोज बाजपेयी ने मुंबई लाइव से खास मुलाकात की। इस मुलाकात में उन्होंने फिल्म, वेब सीरीज के अलावा निजी जिंदगी से जुड़े कई सावालों का बेबाकी के साथ जवाब दिया।    

द फैमिली मैन करने की खास वजह?

हमारे यहां इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म अमेजॉन और नेटफ्लिक्स हैं। अमेजॉन की पहुंच 200 देशों तक है और खास बात यह है कि यह प्लेटफॉर्म ‘द फैमिली मैन’ को 200 देशों तक पहुंचा रहा है, जोकि सभी को नहीं पहुंचाता है। मैं लॉस एंजलिस गया था, वहां पर 200 पत्रकारों के सामने मुझे ‘द फैमिली मैन’ को प्रेजेंट करने का मौका दिया गया। अमेजॉन इसको एक इंटरनेशनल सीरीज की तरह प्रमोट कर रहा है। तो आप इसी से समझ सकते हैं कि इसकी स्क्रिप्ट कितनी अच्छी रही होगी और यह कितनी बढ़िया बनी है।

मैंने पहले ही सोचा था कि अगर कोई वेब सीरीज करुंगा, तो ऐसी करुंगा जोकि ओटीटी प्लेटफॉर्म की ग्रोथ में अपनी भागीदारी देगा। मुझे लगता है कि ‘द फैमिली मैन’ उस लेवल की वेब सीरीज है। इसकी कहानी एक स्पाई की नहीं बल्कि एक आम आदमी की कहानी है। जो भी मिडल क्लास आदमी या औरत है और काम करते हैं तो काम और घर के बीच संतुलन बनाना एक बहुत ही मुश्किल काम होता है। इसी बीच आपको ड्रामा, एक्शन, फैमिली के झगड़े, दोस्तों के साथ झगड़ा है। एक तरफ देश को बचाने जाना है एक तरफ बीवी अलग तांडव किए हुए है। मुझे इसकी स्क्रिप्ट पढ़कर यही लगा था कि इस कहानी को हर कोई रिलेट करेगा।

एक समय में ही एक फैमिली मैन और वर्ल्ड क्लास स्पाई का किरदार निभाना कितना मुश्किल था?
यह इस कैरेक्टर की खूबसूरती है। एक साधारण सी बात करते करते वह अचानाक से एक दम सीरियस हो जाता है। अचानक से वह स्पाई बन जाता है तो अगले क्षण वह पति, पिता और दोस्त भी बन जाता है। वैसे देखा जाए तो हम सभी अपने जीवन में इतने रोल निभाते हैं। मुझे बस इस किरदार को नेचुरल तरीके से स्विच करना था। बेशक यह मुश्किल था लेकिन रिहर्सल कर कर के उसे हासिल किया।  

आपको लगता है इंडस्ट्री में बड़ा बदलाव आया है, आज किसी कलाकार को काम मिलना आसान हो गया है?

निश्चित रूप से इंडस्ट्री में बहुत बदलाव आए हैं। आज इतने सारे प्लेटफॉर्म आ गए हैं अगर कलाकार के अंदर टैलेंट है तो वह भूखा नहीं मरेगा। उसे कहीं ना कहीं काम मिल जाएगा। हमारे समय में हालात बेहद अलग थे, हमें पता नहीं होता था कि ऑडिशन कहां देना है।

ऑटोबायोग्राफी लिखने की कोई योजना?

मुझे बड़े बड़े प्रकाशन से फोन आते रहते हैं। पर मैं उस समय ऑटोबायोग्राफी (आत्मकथा) लिखूंगा, जिस दिन मेरे अंदर खुद को महान ना बताने की हिम्मत आ जाएगी। मेरे साथ जिस तरह से चीजें हुई हैं, उसी तरह कहने का साहस होगा। जिसमें झूठ जरा भी नहीं होगा। तो उस दिन मैं जरूर लिखूंगा।

तो आपको लगता है कि लोग अपनी ऑटोबायोग्राफी में झूठ का सहारा लेते हैं?

मैं किसी और की बात नहीं कर रहा हूं, मैं खुद की बात कर रहा हूं। मुझे लगता है कि ऑटोबायोग्राफी को लिखो तो हर बात को सच लिखो। अगर नहीं तो ऑटोबायोग्राफी का कोई मतलब नहीं।

कौन सी घटनाएं हैं जो आप ऑटोग्राफी में लिखने के लिए सहज नहीं हैं?

जीवन की कुछ घटनाएं ऐंसी होती हैं, पर अभी आपको क्यों बताऊं, बता दूंगा तो वैसे भी मेरी ऑटोबायोग्राफी लिख जाएगी।

बहुत सारी वेब सीरीज में गाली और सेक्स को किसी औजार की तरह इस्तेमाल किया गया है, इसे आप कैसे देखते हैं?

मुझे गालियों से कोई परहेज नहीं है। पर मेरा अपना मानना है कि किसी भी चीज का इस्तेमाल जिम्मेदारी के साथ होना चाहिए। जितनी जरूरत है, उतनी और जहां जरूरी है वहां। अगर जरूरत नहीं है तो बिलकुल मत दो। जैसे कि ‘द फमिली मैन’ में ना के बराबर गाली है। सिर्फ श्रीकांत तिवारी जो कि मैं प्ले कर रहा हूं, वह उत्तर प्रदेश की एक ऐसी जगह से है जोकि एक टुच्ची सी गाली देता है। उसके भी गाली देने का कारण है, बे वजह वह भी गाली नहीं देता। पर और कोई सीरीज में गाली देता नजर नहीं आएगा, क्योंकि जरूरत ही नहीं समझ में आई।  

  

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