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समुद्र के खारे पानी से पीने योग्य पानी का निर्माण करेगी BMC

इस परियोजना के लिए मुंबई के तट से दूर एक भूमि की आवश्यकता होगी। इसे देखते हुए, महाराष्ट्र पर्यटन विकास महामंडल के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मनोरी बीच पर 12 हेक्टेयर सरकारी भूमि की पहचान की गई है।

समुद्र के खारे पानी से पीने योग्य पानी का निर्माण करेगी BMC
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आने वाले कुछ दिनों में समुद्र (sea) के खारे पानी से पीने योग्य पानी का उत्पादन किया जाएगा। यह काम BMC करने वाली है। BMC को इस कार्य के लिए स्थायी समिति ने मंजूरी दे दी है।

जलवायु विशेषज्ञ और अनुभवी मेसर्स IDE वॉटर टेक्नोलॉजी लिमिटेड नामकी कंपनी ने BMC के सामने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। यह प्रस्ताव महाराष्ट्र राज्य सरकार अधिनियम महाराष्ट्र इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट इनेबलिंग अथॉरिटी एक्ट 2018 (Maharashtra Infrastructure Development Enabling Authority Act 2018) के तहत प्रस्तुत किया गया है।

मेसर्स I.D.I वॉटर टेक्नोलॉजीज लिमिटेड कंपनी द्वारा BMC को सौंपे इस प्रस्ताव के अनुसार, मुंबई के लिए प्रतिदिन 200 मिलियन लीटर क्षमता वाली एक परियोजना का निर्माण किया जा सकता है। भविष्य में, इसका उत्पादन बढ़ाकर प्रति दिन 400 मिलियन लीटर तक किया जा सकता है। इसके लिए शुरुआत में 6 हेक्टेयर और फिर विस्तार के लिए 8 हेक्टेयर जगह की आवश्यकता होगी।

प्रतिदिन 200 मिलियन लीटर उत्पादन क्षमता वाली परियोजना को स्थापित करने की लागत 1,600 करोड़ रुपये आंकी गई है, और इसके 20 साल के संचालन और रखरखाव की लागत लगभग 1,920 करोड़ रुपये हो सकती है।

इस परियोजना के लिए मुंबई (mumbai) के तट से दूर एक भूमि की आवश्यकता होगी। इसे देखते हुए, महाराष्ट्र पर्यटन विकास महामंडल के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मनोरी बीच पर 12 हेक्टेयर सरकारी भूमि की पहचान की गई है। महामंडल, इस भूमि के हस्तांतरण के संबंध में महाराष्ट्र पर्यटन विकास महामंडल के साथ पत्राचार भी कर रहा है।

मुंबई महानगर को सात विभिन्न जलाशयों के माध्यम से पानी की आपूर्ति की जाती है। इन सात जलाशयों में ब्रिटिश काल से लेकर हाल तक बने जलाशय शामिल हैं। ये सभी जलाशय पानी के लिए बारीश पर निर्भर रहते हैं, अगर वर्षा होती है तो ठीक, नहीं तो इन जलाशयों के सूखते देर नहीं लगती।

मुंबई को पानी की आपूर्ति करने वाले इन जलाशयों में अगर स्टॉक से पानी कम हो जाता है, तो मुंबईकरों को 10 से लेकर 20 फीसदी पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा में देरी होती है, इसका भी असर देखने को मिलता है। अगर परियोजना सफल रहती है तो यह किसी क्रांति से कम नहीं होगी।

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