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गणेशोत्सव के जनक लोकमान्य तिलक की श्रद्धांजलि पर खास!


गणेशोत्सव के जनक लोकमान्य तिलक की श्रद्धांजलि पर खास!
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‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। मेरा स्वराज जबतक मेरे अंदर जिंदा है मैं कमजोर या बूढ़ा नहीं हो सकता। कोई भी हथियार इस हौसले को नाही पस्त कर सकती, कोई आग इसे जला नहीं सकती, पानी की धारा इसे भिगो नहीं सकती, हवा के तेज झोंके भी इसे सुखा नहीं सकते। हम स्वराज की मांग करते हैं और हम इसे लेकर रहेंगे।‘  

इस तरह के तेज तर्राट भाषण देने और लेख लिखने वाले, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा लोकमान्य तिलक की आज पुण्यतिथि है। लोकमान्य तिलक स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा, समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर पत्रकार, राष्ट्रीय नेता होने के साथ साथ भारतीय इतिहास, संस्कृत, भारतीय संस्कृति, गणित और खगोल विज्ञान के प्रख्यात विद्वान थे। आइए आज हम आपको उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताते हैं जो उन्हे तिलक से लोकमान्य तिलक बनाती है।  


एक ऐसा नारा जो बना जन जन की आवाज

‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर रहूंगा’ लोकमान्य के इस नारा ने देशभर की जनता को झकझोर दिया था। इसे नारे का असर शहर से लेकर गांव तक की गलियों में पड़ा। हर किसी की जबान पर यह नारा ठहर गया था। स्वराज्य को समझते हुए देश का हरेक नागरिक स्वराज्य की मांग करने लग गया था। तिलक ने यह नारा उस समय दिया था जब 1857 की क्रांति की असफलता के बाद लोग उदास और मायूष पड़ गए थे। उस समय देश की जनता के पास अंग्रेजों के राजा की जयकार लगाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।    


चार हथियारों का अविश्कार

लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजों का सामना करने के लिए स्वदेशी, स्वराज्य, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, और राष्ट्रीय शिक्षा जैसे 4 हथियारों का अविश्कार किया। आगे चलकर महात्मा गांधी ने इन चारो हथियारों का इस्तेमाल किया और भारत को स्वतंत्रता दिलवाई।


पत्रकारिता और जेल

तिलक ने पत्रकारिता को स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया। उन्होंने ‘मराठा’ और ‘केशरी’ नामक साप्ताहिक पत्रिकाएं शुरु की। ‘मराठा’ अंग्रेजी में और ‘केशरी’ मराठी में प्रकाशित होती थी। इसके माध्यम से वे गोरों से जमकर लड़े और जनता को देश प्रेम के प्रति जागृत करने का काम किया। अंग्रेजों को उनका यह कदम नागवार गुजरा और इसके लिए तिलक को एक बार नहीं दो बार नहीं बल्कि तीन-तीन बार जेल जाना पड़ा।


कुरीतियों से जमकर लड़े

‘मैं उसे ईश्वर नहीं मानूंगा जो छूआछूत मानता हो’ यह कहना था तिलक का। समाज में फैली कुरीतियों से तिलक जमकर लड़े। उन्होंने नशाबंदी और बालविवाह पर सरकार से रोक लगाने की अपील की साथ ही विधवा पुनर्विवाह की आवाज उठाई। दलितों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कार्यक्रम चलाए।


बाप्पा का आगमन

मुंबई शहर में गणपति बाप्पा का त्योहार गणेश चतुर्थी बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसको शुरु करने के पीछे लोकमान्य तिलक का मकसद था लोगों में एकजुटता लाना। ताकि एक होकर अंग्रेजों को बाहर खदेड़ा जा सके। इसमें शामिल होने वाले युवाओं को देशहित में 11 शपथ दिलाई जाती थी। इसे आदर्श शपथ कहा जाता था। इसीलिए तिलक ने गणेशोत्सव और शिवाजी उत्सव पर बल दिया।  


सिर्फ अपने कोर्स से संतुष्ट नहीं

अगर हम तिलक के बचपन की बात करें तो पता चलता है कि उन्हें बचपन से ही गणित विषय पर खासी दिलचस्पी थी। उनके बारे में कहा जाता है कि वे सिर्फ अपने कोर्स की किताबों से संतुष्ट नहीं होते थे। वे अपने कोर्स के अलावा केंब्रिज मैथमेटिकल में प्रकाशित होने वाले गणित के सवालों को हल करते थे।


बचपन में छूटा माता-पिता का साथ

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था। तिलक जब 10 साल के थे तभी उनकी मां पार्वती बाई का निधन हो गया था। वहीं जब वे सिर्फ 16 साल के थे तो उनके पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक चल बसे। उनके दादा उन्हें 1857 की क्रांति के वीरों की गाथा सुनाया करते थे। जिनका उनके मन में गहरा असर पड़ा।

1 अगस्त 1920 को लोकमान्य तिलक का निधन मुंबई में हुआ था। उनका अंतिम संस्कार मुंबई के गिरगांव में किया गया। वे अपनी आंखों से देश की स्वतंत्रता तो ना देख सके पर उन्होंने जो बीज बोए थे उसी ने देश को जीत दिलाई। लोकमान्य का मतलब होता है लोग जिसे अपना मानते हों, इसलिए बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य की उपाधि से सम्मानित किया गया। मुंबई में उनके नाम से रेलवे स्टेशन वा गलियों के नाम हैं।

महात्मा गांधी ने लोकमान्य तिलक को श्रद्धाजलि अर्पित करते उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और जवाहरलाल नेहरु ने उन्हें भारतीय क्रांति का जनक कहा था।    



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