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हिंदी दिवस विशेष - हिंदी हैं हम वतन के, हिन्दोस्तां हमारा


हिंदी दिवस विशेष - हिंदी हैं हम वतन के, हिन्दोस्तां हमारा
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भारत देश में हर साल 14 सितंबर के दिन को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। बहु भाषी भारत के हिन्दी भाषी राज्यों की आबादी 46 करोड़ से अधिक है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की 1.2 अरब आबादी में से 41.03 फीसदी की मातृभाषा हिंदी है । हिन्दी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिन्दी बोल सकते हैं। भारत के इन 75 प्रतिशत हिंदी भाषियों सहित पूरी दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसे बोल या समझ सकते हैं।

हिंदी दिवस का इतिहास

हिन्दी दिवस का इतिहास और इसे दिवस के रूप में मनाने का कारण बहुत पुराना है। वर्ष 1918 में महात्मा गांधी ने इसे जनमानस की भाषा कहा था और इसे देश की राष्ट्रभाषा भी बनाने को कहा था। लेकिन आजादी के बाद ऐसा कुछ नहीं हो सका। सत्ता में आसीन लोगों और जाति-भाषा के नाम पर राजनीति करने वालों ने कभी हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनने नहीं दिया। 1947 में देश के आजाद होने के बाद संविधान में नियमों और कानून के अलावा नए राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का मुद्दा भी अहम था। जिसके बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसके बाद आधिकारिक रूप से साल 1953 से 14 सिंतबर के दिन को पूरे भारत में हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

14 सितंबर को ही क्यों?

13 सितम्बर 1949 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि किसी विदेशी भाषा से कोई देश महान नहीं बन सकता, क्योंकि कोई भी विदेश भाषा आम लोगों की भाषा नहीं बन सकता है। 14 सितंबर 1949 में हिन्दी भाषा के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया। इस कारण हर वर्ष 14 सितम्बर के दिन को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारी प्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास और व्यौहार राजेन्द्र सिंह आदि लोगों ने बहुत से प्रयास किए। जिसके चलते इन्होंने दक्षिण भारत की कई यात्राएँ भी की।

हिंदी की विदेशों में मांग

भारत के बाहर हिन्दी जिन देशों में बोली जाती है उनमें पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लोदश, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, यमन, युगांडा और त्रिनाड एंड टोबैगो, कनाडा आदि में बोलने वालों की अच्छी खासी संख्या है। इसके आलावा इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले अच्छे खासे लोग हैं।
भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983, मॉरीशस में 685,170, दक्षिण अफ्रीका में 890,292, यमन में 232,760, युगांडा में 147,000, सिंगापुर में 5,000, नेपाल में करीब 8 लाख, न्यूजीलैंड में 20,000, जर्मनी में 30,000 हैं।
हिन्दी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए सरकार की ओर से हिंन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। वैसे यूनेस्को की सात भाषाओं में हिन्दी पहले से ही शामिल है।


बढ़ रहा है रुतबा हिंदी का

वैश्वीकरण और भारत के बढ़ते रूतबे के साथ पिछले कुछ सालों में हिन्दी के प्रति विश्व के लोगों की रूचि खासी बढ़ी है। देश का दूसरे देशों के साथ बढ़ता व्यापार भी इसका एक कारण है।हिन्दी के प्रति दुनिया की बढ़ती चाहत का एक नमूना यही है कि आज विश्व के लगभग डेढ़ सौ विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ी और पढ़ाई जा रही है। विभिन्न देशों के 91 विश्वविद्यालयों में ‘हिन्दी चेयर’ है।
इसके बढ़ते रूतबे की एक बानगी यही है कि आज चीन के छह, जर्मनी के सात, ब्रिटेन के चार, अमेरिका के पांच, कनाडा के तीन और रूस, इटली, हंगरी, फ्रांस तथा जापान के दो दो विश्वविद्यालयों सहित तकरीबन 150 विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में यह किसी न किसी रूप में शामिल है।

बॉलीवुड ने दिलाई पहचान

अपने देश में भले ही हिंदी का जो सभी स्थिति हो लेकिन बॉलीवुड ने हिंदी को दुनिया भर में पहुंचाया है। बॉलीवुड के कारण ही आज अनेक देशों में हिंदी फिल्मों के गानों को बड़े चाव से सुना जाता है और कई विदेशी तो अपनी शादी में हिंदी गाने बजाने की मांग करते हैं। यही नहीं कई विदेशी होटल्स, पब और बारों में तो हिंदी गानों का खासी डीमांड रहती है। बॉलीवुड में काम करने वाले ऐसे कई एक्टर और एक्ट्रेस के साथ को-स्टार हैं जो हिंदी सीख रहे है। हाल हाल ही में जब पीएम नरेंद्र मोदी ब्रिक्स सम्मलेन के दौरान चीन गये हुए थे तो वहां एक पत्रकार ने हिंदी में गाकर सबका दिल जीत लिया।  

(video Credit: ANI)

अपनों में पराई हुई हिंदी

सच तो यह है कि ज्यादातर भारतीय अंग्रेजी के मोहपाश में बुरी तरह से जकड़े हुए हैं। आज स्वाधीन भारत में अंग्रेजी में निजी पारिवारिक पत्र-व्यवहार बढ़ता जा रहा है। काफी कुछ सरकारी व लगभग पूरा गैरसरकारी काम अंग्रेजी में ही होता है। दुकानों वगैरह के बोर्ड अंग्रेजी में ही होते हैं। होटलों व रेस्टॉरेंटों इत्यादि के मेनू अंग्रेजी में ही होते हैं। ज्यादातर नियम-कानून या अन्य काम की बातें, किताबें इत्यादि अंग्रेजी में ही होते हैं। उपकरणों या यंत्रों को प्रयोग करने की विधि अंग्रेजी में लिखी होती है, भले ही उसका प्रयोग किसी अंग्रेजी के ज्ञान से वंचित व्यक्ति को करना हो। अंग्रेजी भारतीय मानसिकता पर पूरी तरह से हावी हो गई है। हिन्दी (या कोई और भारतीय भाषा) के नाम पर छलावे या ढोंग के सिवाय कुछ नहीं होता है। हर साल हिंदी दिवस तो मनाया जाता है हिंदी के नाम पर बड़े बड़े वादे किये जाते हैं लेकिन मात्र यह सारे वादे औपचारिकता बन कर रहा जाती है. हिंदी की दुर्दशा जितना उसके देश यानी हिंदुस्तान में हुआ है वह किसी से छुपा नहीं है।

हिन्दी दिवस पर आधुनिक हिन्दी के जनक माने जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र की कालजयी पंक्तियां याद करना समीचीन होगा-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।

(नोट: विभिन्न स्रोतों से जुटाई गई जानकारी के आधार पर)


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