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मल्टीप्लेक्स के ज़माने में दम तोड़ते सिंगल स्क्रीन थियेटर

मल्टीस्क्रीन्स के इस जमाने में कई सिंगल स्क्रीन थियेटर या तो बंद हो गए हैं या फिर कई तो बंद होने की कगार पर खड़े हैं।

मल्टीप्लेक्स के ज़माने में दम तोड़ते सिंगल स्क्रीन थियेटर
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कुछ समय पहले जब आमिर खान की फिल्म 'दंगल' सिंगल स्क्रीन थियेटरों में रिलीज हुई थी तो देश भर के सिंगल स्क्रीन थियेटरों के मालिकों ने आमिर खान का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया था। ऐसा इसिलिये क्योंकि फिल्म दंगल ने सिंगल स्क्रीन थियेटरों में उस समय प्राण फूंके थे जब इनकी सांस टूट रहीं थीं। करीब-करीब बंद होने की कगार पर पहुँच चुके इन सिंगल स्क्रीन थियेटर के मालिकों ने फिल्म दंगल से अच्छी खासी कमाई की थी।


'इरोज' का किस्सा अभी भी जेहन में 


मल्टीस्क्रीन्स के इस जमाने में कई सिंगल स्क्रीन थियेटर या तो बंद हो गए हैं या फिर कई तो बंद होने की कगार पर खड़े हैं। ऐसा इसीलिए भी है क्योंकि धंदा मंदा होने से खुद इनके मालिकों की स्थिति अच्छी नहीं है। पिछले साल दक्षिण मुंबई में स्थित 'इरोज' थियेटर सील किये जाने की खबर से हर मुंबईकर हैरान भी था और मायूस भी,क्योंकि मुंबई में रहने वाले अधिकांश लोगो ने कभी न कभी तो इस थियेटर में जरूर ही कोई न कोई फिल्में देखीं होंगी। हालांकि बाद में इस 'सील' को हटा दिया गया लेकिन इस खबर से इरोज के ग़ुरबत के दिन जरूर सामने आ गए थे।


मल्टीप्लेक्स की चकाचौंध पड़ रही भारी


इसमें कोई शक नहीं है कि सिंगल स्क्रीन थियेटरों पर मल्टीप्लेक्स की चकाचौंध भारी पड़ती है। पहले और अब के समय में काफी फर्क है, अब लोगों के जीवन स्तर में काफी सुधार आ गया है। महंगे होने के बाद भी लोग सिंगल स्क्रीन थियेटर की अपेक्षा मल्टीप्लेक्स में जाना अधिक पसंद करते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि मल्टिप्लेक्स की बनावट, साज सज्जा,एक ही छत के नीचे कई फिल्मे देखने की सुविधा, बड़ा पार्किंग स्थल सहित और भी ऐसी कई चीजें हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करतीं हैं। इसके बावजूद भी चित्रा, मराठा मंदिर, प्लाजा सिनेमा जैसे कई सिंगल स्क्रीन थियेटर हैं जिन्होंने लुक चेंज कर मल्टीप्लेक्स की तरह बनने की कोशिश की है।


अच्छी फिल्मों का भी अभाव


छोटे शहरों में सिंगल स्क्रीन थियेटरों के बंद होने का एक और कारण बताया जाता है कि इन थिएटरों में अकसर रीजनल लैंग्वेज की ही फिल्मे दिखाई जाती हैं, यही नहीं इन फिल्मो के कंटेंट भी अच्छे नहीं होते। इसीलिए लोग फिल्में देखने नहीं आते। मुंबई जैसे बड़े शहरों में कई सिंगल स्क्रीन थियेटर को कुछ दर्शक मिल भी जाते हैं जिससे उनकी रोजी रोटी चलती रहती है। वर्ना कइयों के तो खाने की भी लाले पड़े हुए हैं।


संजीवनी साबित हो रही हैं 'भोजपुरी' फ़िल्में


बताया जाता है कि मुंबई में सिंगल स्क्रीन थियेटरों की संख्या लगभग 80 है जो रेगुलर चलते हैं। इनमे भी 90 फीसदी थियेटरों में भोजपुरी फ़िल्में दिखाई जाती हैं। मुंबई में यूपी, बिहार, एमपी सहित हिंदी भाषी लोगों की अच्छी खासी संख्या है। ये सभी भोजपुरी फिल्मों के प्रति दीवाने होते हैं। भोजपुरी फिल्मों का मार्किट भी काफी बड़ा है, इसीलिए कई भोजपुरी दर्शक सिंगल स्क्रीन थियेटरों में जाकर भोजपुरी फिल्मों का लुत्फ़ उठाते हैं। यह नहीं भोजपुरी फ़िल्में अपने द्वीअर्थी गानों, मारधाड़ और अडल्ट कंटेंट से भरी होती हैं जो हिंदी भाषियों को काफी पसंद आती हैं, इसीलिए यहां भीड़ बझी जुटती है। इससे थियटरों की कमाई भी हो जाती है।


सरकार की टैक्स निति भी जिम्मेदार


सिनेमा ओनर्स एंड एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष नितीन दातार बताते हैं कि जब देश में मल्टीप्लेक्स का आगमन हुआ था तब सरकार ने इनका 5 साल का टैक्स माफ़ किया था। इसे देखते हुए सिंगल स्क्रीन थियेटरों के मालिकों ने भी टैक्स माफ़ करने की मांग की थी लेकिन उनकी मांगे अनसुनी कर दी गयीं। वे कहते हैं कि एक सिंगल स्क्रीन थियेटर में लगभग 700 से लेकर 800 दर्शकों की बैठने की जगह होती है। संख्या काफी बड़ी है इसीलिए कोई भी शो हाउसफुल नहीं हो पाता। इसका नुकसान भी सिंगल स्क्रीन थियेटर के मालिकों को ही होता है।

दातार आगे कहते हैं कि सिंगल स्क्रीन थियेटरों के उलट मल्टीप्लेक्सों में एक साथ कई फिल्में देखने का विकल्प होता है लोग अपने पसंद की फिल्मे ही देखते हैं। अगर किसी शो में भीड़ कम भी हुई तो उसी समय में ही कोई और शो अधिक भीड़ होती है, इसीलिए उनका बैलेंस बराबर हो जाता है।

बकौल दातार सिंगल स्क्रीन थियेटर के मालिकों ने भी अपने नुकसान को देखते हुए सरकार से 2 से 3 स्क्रीन चलाने की मंजूरी मांगी थी, लेकिन सरकार ने इस मांग को ठुकरा दिया।



'मुनाफा' में भी अंतर


अगर फिल्म हिट होती है तो उसके नफे में भी अंतर होता है। मल्टीप्लेक्स के मालिकों को हर सुपरहिट फिल्म के पीछे 45 से 50 फीसदी का मुनाफा होता है जबकि सिंगल स्क्रीन थियेटर के मालिकों को हर सुपरहिट फिल्म के पीछे मात्र 10 से 15 फीसदी का ही मुनाफा होता है।


सिंगल स्क्रीन थियेटर मालिक पिछले 15 सालों से अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। हमारा जो नुकसान हो रहा था वो तो था ही, रही सही कसर जीएसटी ने पूरी कर दी। अगर यही हाल रहा तो मुंबई में इस समय जो भी सिंगल स्क्रीन थियेटर चल रहे हैं वो भी बंद हो जाएंगे। सिंगल स्क्रीन थियेटर को बचाने के लिए सरकार के साथ साथ आम लोगों को भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी।

- योगेश मोरे, व्यवस्थापक, प्लाझा सिनेमा

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