माय लाइफ इज हिन्दी बट माय वाइफ इज इंग्लिश। टुडे गॉड प्रोमिस आय स्पीक इंग्लिश, बिकॉज इंग्लिश इज इंडिया एण्ड इंडिया इज ए इंग्लिश, ये डायलॉग्स फिल्म हिंदी मीडियम के हैं। फिल्म के ये डायलॉग सुन और इसका ट्रेलर देखकर ही पता लगता है कि फिल्म के डायरेक्टर साकेत चौधरी ने शिक्षा के मुद्दे को फिल्म के माध्यम से उठाने की पूरी कोशिश की है। इस फिल्म में इरफान खान प्रमुख भूमिका में हैं। वे एक बच्ची के पिता के किरदार में हैं। उनका यह किरदार दिखाएगाा कि बच्चों का एडमिशन कराने में पैरेंट्स को कौन कौन से पापड़ बेलने पड़ते हैं। साथ ही शिक्षा सिस्टम में कहां कहां खोट है,उस बर भी फिल्म प्रकाश डालेगी। हिन्दी मीडियम 19 मई को रिलीज होगी। फिल्म की रिलीज से पहले हमने इरफान खान से खास मुलाकात की। प्रस्तुत हैं मुलाकात के प्रमुख अंश।
हॉलीवुड और हिन्दी
इस पर इरफान ने कहा, अगर आप हॉलीवुड मुवीज में काम करते हैं, तो आपको अंग्रेजी सीखनी ही पड़ेगी। वैसे भी दूसरी भाषा सीखना अच्छा ही है, आपके दिमाग के लिए भी अच्छा है। पर हमें चाहिए कि हम अपनी भाषा में अच्छी पकड़ बनाएं। अगर आप हिन्दुसान के टॉप 20लोगों को देखेंगे तो ज्यादातर लोग हिन्दी मीडियम के ही हैं। लोगों का सिर्फ ऐसा नडजरिया बन गया है जिसे अंग्रेजी नहीं आती है उसे कम आंकने का। इसमें लड़कियों की संख्या अधिक है।
अंग्रेजी में स्ट्रगल
इरफान खान ने बताया कि स्कूल के टाइम में वे भले ही अंग्रेजी स्कूल में पढ़ते थे, फिर भी अंग्रेजी बोलने को लेकर उनके सामने दिक्कतें थीं। अगर कोई स्टूडेंट हिन्दी में बात करते पाया जाता था तो उसे दंड मिलता था। मुझे कई बार दंड भी मिला।
अंग्रेजी पढ़ना मतलब बड़ी कामयाबी
इरफान ने कहा, पैरेंट्स का ऐसा नजरिया बन गया है कि बच्चे अंग्रेजी मीडियम में पढ़ेंगे तो वे ज्यादा कामयाब होंगे। ये नजरिया बनने की वजह है हमारे पास अच्छे हिन्दी मीडियम स्कूलों का ना होना। हिन्दी स्कूलों को सरकार द्वारा ज्यादा तवज्जों नहीं दी गई है। जिसकी वजह से प्राइवेट स्कूलों में वृद्धि हुई है। प्राइवेट संस्थान सिर्फ अपने मुनाफे के लिए काम करते हैं। सरकार को हिन्दी के स्कूलों पर बल देना चाहिए। ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा बच्चों के सरकारी स्कूल्स में एडमिशन कराएं। हिन्दी मीडियम स्कूल का मतलब यह बिलकुल भी नहीं है कि उन्हें दूसरी भाषाओं का ज्ञान ना हो, दूसरी भाषाएं भी सिखाई जाएं पर माध्यम हिन्दी रहे।
बॉलीवुड सरकल में अंग्रेजी भारी
इरफान खान ने कहा, बॉलीवुड सर्कल में अंग्रेजी भारी है,पर स्टोरी सुनाने के लिए मजबूरी में हिन्दी बोलनी पड़ती है। पर सुपरस्टार ज्यादातर हिन्दी से ही निकलकर आए हैं। चाहे वे दिलीप कुमार हों, अमिताभ बच्चन हों या फिर देवानंद और राज कपूर। उस जमाने के गाने भी उस भाषा की वजह से ही जिंदा हैं। आजकल के एक्टर्स की शिक्षा अंग्रेजी में ही हुई है, इसलिए वे अंग्रेजी में सोचते भी हैं,पर कभी कभी मजबूरी में हिन्दी बोलनी पड़ती है।
सोनू निगम के ट्वीट पर दो टूक
सिंगर सोनू निगम ने हाल ही में लाउडस्पीकर के खिलाफ आवाज उठाई थी। जिसके बाद से बॉलीवुड इंडस्ट्री में ही कुछ लोगों ने उनका सपोर्ट किया तो कुछ लोगों ने विरोध भी किया। इस पर इरफान खान ने कहा, लाउडस्पीकर एक बड़ा मुद्दा है। क्या हमारा समाज साउंड को लेकर इतना सेंसटिव है, क्या हमारा समाज अन्य जगहों के साउंड को लेकर सेंसटिव है। अगर साउंड को लेकर सेंसिविटी है तो सभी मुद्दों पर विचार होना चाहिए। सिर्फ एक ही मुद्दा(अजान)नहीं सारे मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए।
सच जिंदा रहेगा ट्रोल नहीं
विचारों की आजादी पर इरफान खान ने कहा,अपने विचार प्रगट करने की सभी को आजादी होनी चाहिए, फिर चाहे वह एक्टर हो या आम आदमी। अगर आपने कुछ कहा है उससे विवाद खड़ा हो रहा है तो आप उसपर विचार कीजिए। अगर आपको लगता है आपने कुछ गलत बोल दिया है तो बिना देरी किए माफी मांग लीजिए और अगर आप सही हैं तो अपने विचारों पर अडिग खड़े रहिए। सच जिंदा रहता है ट्रोल जिंदा नहीं रहता।
गांधी जी आदर्श
इरफान खान ने कहा, मैं गांधी जी को आदर्श इसलिए मानता हूं, क्योंकि वे एक बड़े खोजी थे। उन्होंने सत्य को खोजकर अलग अलग तरीके से परिभाषित किया है। वे बहुत सारी चीजों का परीक्षण कर रहे थे। इसलिए वे समस्या की तह तक पहुंच सके। वैसे तो आजादी की लड़ाई सब अपने अपने स्तर से लड़ रहे थे, पर उन्होंने अंग्रेजों की जिस दुखती रग पर हाथ रखा वहां तक किसी की सोच पहुंची ही नहीं थी।
सबा कमर को पहनाना है साड़ी
इरफान ने सबा कमर के साथ काम करने का अनुभव शेयर करते हुए कहा,सबा कमर बहुत ही चटपटी लड़की हैं,उनका सेंस ऑफ ह्यूमर भी गजब का है,फिल्म की डिमांड भी ऐसे ही किरदार की थी। इसके अलावा उनका एक अच्छी एक्ट्रेस होना भी जरूरी था,सो वह भी उनमें था। अफसोस की सबा कमर को साड़ी नहीं पहना सका,पर हिन्दी मीडियम के दूसरे पार्ट में जरूर पहनाना चाहूंगा।
हिन्दी मीडियम क्यों देखें ?
इस पर इरफान ने कहा, हिन्दी मीडियम फिल्म शिक्षा पर केंद्रित है। इसमें दिखाया गया है कि लोगों को अपने बच्चों के एडमिशन कराने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते है। कैसी कैसी सिचुएशन का सामना करना पड़ता हैै। इस फिल्म को देखने के बाद शायद पैरेंट्स के कुछ सावाल भी सुलझ जाएं।
बेटा और फील्ड
पूछे गए सवाल पर कि बेटे को लेकर आपकी क्या योजना है, इस पर इरफान का कहना है, मैं बेटे को माहौल बनाकर दूंगा,सारी चीजों से रूबरू करवाउंगा पर योजना खुद बेटा ही बनाएगा।
आज की जनरेशन बाहर की चाजों से प्रभावित है। आज हम लोग खुद बदल रहे हैं,ये पहनावा,प्लास्टिक की बॉटल, पिज्जा क्या हमारी देन है? बच्चों को ज्यादा आप क्यो बोलोगे?