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मुंबईकरों को क्या चाहिए, शुद्ध पर्यावरण या विकास ?


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मुंबई - चुनावी मौसम में जिस तरह से जनता के मिजाज को भांपा नहीं जा सकता उसी तरह से आजकल मौसम भी हो गया है। मौसम के मिजाज को भी भांपना कठिन होता जा रहा है। फरवरी महीने में जिस तरह से उमस भरी गर्मी और कड़ी धुप हो रही है अकसर ऐसी गर्मी और धुप मई और जून महीने में देखने को मिलती है। रविवार 26 फरवरी को गर्मी का पारा ऐसा चढ़ा की पारा चढ़कर 37 डिग्री तक चला गया। इस बारे में पर्यावरण विशेषज्ञ गिरीश राउत का कहना है कि शहरों में बढ़ रहे शहरीकरण और औद्योगिकरण के साथ-साथ बड़े पैमाने पर पेड़ो की कटाई इसके लिए जिम्मेदार है।

वाचडॉग फाउंडेशन के सदस्य गॉडफ्रे पीमेंटा ने इसके लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार माना है। पीमेंटा के अनुसार विकास के नाम पर पेड़ो को काटा जा रहा है, प्रदुषण बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि मुंबई में 2010 से लेकर 2016 यानी छह सालों में 25 हजार से अधिक पेड़ों को काटे जाने का प्रस्ताव सरकार के पास आया या फिर सरकार ने प्रस्ताव को मंजूर किया।

इस बदलते मौसम में मौसम की बेरुखी सही में चिंताजनक बात है। मेट्रो परियोजना के तहत कितने ही पेड़ो को काटा गया यह किसी से छुपा नहीं है। यह सिलसिला अभी भी बदस्तूर जारी है। अगर इस तरफ सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में नतीजे इससे भी भयानक हो सकते हैं।

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