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13 नवंबर को छठ पूजा , उत्तर भारत में खास महत्व

13 नवंबर को संध्या के समय डूबते हुए सूर्य को और 14 नवंबर को उदय हो रहे सूर्य को अघ्र्य देकर महिलाएं छठी माता और भगवान भास्कर का पूजन करेंगी।

13 नवंबर को छठ पूजा , उत्तर भारत में खास महत्व
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पुत्रों की लंबी आयु के लिए व्रत करने का पावन पर्व छठ पूजा 11 नवंबर को शुरू होगा। 13 नवंबर को संध्या के समय डूबते हुए सूर्य को और 14 नवंबर को उदय हो रहे सूर्य को अघ्र्य देकर महिलाएं छठी माता और भगवान भास्कर का पूजन करेंगी। छठ पूजा का महत्तव उत्तर भारत में काफी माना जाता है। उदय होते सूर्य का पूजन अर्चन करने के बाद ही दो दिनों के निर्जला व्रत का पारायण होता है।

क्या है व्रत के नियम
जो महिलाएं व्रत रखती हैं वह भूमि पर सोती हैं। गेंहू और चावल को धुलने के बाद सुखाया जाता है और फिर गेहूं को चाकी पर पीस कर आटे से ठेकुआ बनाया जाता है। पिसे हुए चावल का लड्डू बनाकर छठ मइया को अर्पित किया जाता है। खरना के दिन ही घरों में डलिया में फल, नारियल आदि रखा जाता है।
चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व को छठ पूजा, छठी माई पूजा, डाला छठ, सूर्य षष्ठी पूजा और छ पर्व के नामों से भी जाना जाता है।

पूजा की क्या है तारीख

11 नवंबर - नहाय खाय के साथ ही लौकी की सब्जी बनती है और चावल बनाया जाता है। इसी दिन से पर्व शुरू होगा।
12 नवंबर - खरना के दिन व्रती महिलाएं खीर और रोटी खाकर पूजन का शुभारंभ करेंगी। इसी रात्रि से व्रत शुरू हो जाएगा।
13 नवंबर - छठ मइया के पूजन के साथ ही संध्या के समय महिलाएं घाटों पर जाएंगी और अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य देंगी।
14 नवंबर - उदय होते सूर्य को घाटों पर अघ्र्य दिया जाएगा और फिर महिलाएं 24 घंटे के निर्जला व्रत का पारायण करेंगी।

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