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गणेश चतुर्थी..उत्सव या नैसर्गिक आपदा


गणेश चतुर्थी..उत्सव या नैसर्गिक आपदा
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"ईश्वर अजन्मा है। वह समय से पहले है और उसके बाद भी रहेगा। गणेश उत्सव हमारे जीवन का प्रतीक है। हम आते हैं, जश्न मनाते हैं और तत्वों में विलीन हो जाते हैं। "
गणेश चतुर्थी का त्योहर हर साल विश्वास और भव्यता के साथ मनाया जाता है। वैसे तो हम बहुत से त्योहार मनाते हैं पर उनमें से सबसे ज्यादा उत्साह गणेश चतुर्थी पर देखा जाता है। बड़ी बड़ी मूर्तियां स्थापित करते हैं। पर होता क्या है विसर्जन के बाद बप्पा की मूर्ति तुकड़ों में विभाजित हो जाती है। क्या हमारी भक्ति की सीमा सिर्फ 11 दिन हैं?
आप सोच भी नहीं सकते कि आपका उत्साह प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचाता है। बप्पा के विसर्जन के बाद समुद्र का नजारा भयंकर होता है। गंदगी के अलावा कुछ नजर नहीं आता। हम जो भी समुद्र में फेंकते हैं उसकी जिम्मेदारी नहीं लेते। हम मूर्ति विसर्जित करें या फूल विसर्तिज करें सब कचरा में तब्दील होता है। एक वक्त आता है जब हमारी ही चीजें प्रकृति हमें वापस करती है। वह हमारे प्रति प्रकृति का आक्रोश होता है। प्रकृति हमें उदाहरण भी दिखाती है चाहे वह केदारनाथ हो या पशुपतिनाथ जहां पर जीवन अस्त व्यस्त हो गया।
ईश्वर को दिल से मानने का प्रण लें, दिखावा ने करें। ऐसा करेंगे तो आप आने वाली पीढ़ी के लिए एक स्वस्थ्य दुनियां छोड़ जाएंगे।

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