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काम के बोझ के मारे, मुंबईकर बेचारे...हो रहे हैं पागल!

काम के बोझ के चलते मुंबई में मानसिक रोगियों की समस्या बढ़ती जा रही है।

काम के बोझ के मारे, मुंबईकर बेचारे...हो रहे हैं पागल!
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मुंबईकर पागल हो रहे हैं या पागल होने की कगार पर हैं? केंद्र सरकार की हेल्थ मैनेजमेंट इनफर्मेशन सिस्टम(एचएमआईएस) की एक रिपोर्ट के अनुसार मुंबई में मानसिक रोगियों की संख्या में बेतहाशा इजाफा हो रहा है। यही नहीं मानसिक रोगियों की संख्या में महाराष्ट्र राज्य देश में दुसरे स्थान पर तो मुंबई महाराष्ट्र में पहले स्थान पर है।

रिपोर्ट के आंकड़ो के अनुसार मुंबई में अप्रैल से लेकर सितंबर तक यानी इन 6 महीने में मानसिक बीमारी की समस्या से परेशान मरीजों की संख्या 35 हजार से भी अधिक थी जबकि प्रदेश स्तर पर यह संख्या 12 लाख से अधिक है। विशेषज्ञों के अनुसार लोगों की जीवनशैली और आपसी संवाद में आ रही कमी आने के कारण लोग मानसिक समस्याओं  से ग्रसित हो रहे हैं।

सोशल मीडिया है कारण

लोग अपना अधिकांश समय अब मोबाइल, इन्टरनेट और सोशल मीडिया पर बिताते हैं इससे परिवार में ही लोगों को एक दुसरे से बात करने का समय नहीं मिला पाता, साथ ही परिवार का विघटन होना भी इसका एक कारण है। जे.जे. हॉस्पिटल के मनोरोग विभाग के मनोचिकित्सक डॉक्टर भरत डीयू ने अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए कहा कि लोगों में आपसी संवाद बहुत कम हो गया है। लोग संवाद नहीं कर पाने के कारण अंदर ही अंदर कुढ़ते रहते हैं जिससे मानसिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। डीयू ने एकाकी परिवार को भी इसका कारण बताया। उन्होंने कहा कि मरीजों में मानसिक तनाव के कारण अवसाद और सीजोफ्रेनिया जैसी बीमारियां अधिक देखने को मिल रही है।

मुंबई है नंबर वन

अगर शहरों की बात करें तो मुंबई शहर भारत के सभी शहरों को पीछे छोड़कर नंबर वन बना हुआ है। केवल मुंबई में हर महीने 6 हजार से अधिक लोग मानसिक समस्या के कारण मुंबई के विभिन्न अस्पतालों में पहुंचते हैं। अप्रैल से सितंबर तक मुंबई में मेंटल ओपीडी की संख्या 38,588 रही।  मेट्रो शहरों की बात करे तो मरीजो की संख्या इस प्रकार है-

मुंबई (38,588)

कोलकाता (27,394)

बैंगलोर (24,348)

लोग हो रहे हैं जागरूक

अखबार से बात करते हुए मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर सागर मुंदड़ा ने कहा कि गलाकाट प्रतियोगिता के चलते लोगों में काम का बोझ बढ़ रहा है इसीलिए लोगों में नशे की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है, लेकिन जागरूक होने के कारण लोग डॉक्टरों से भी सम्पर्क कर रहे हैं।

लोगों को सही मायनो में सोशल होने की जरूरत है लेकिन सोशल मीडिया में नहीं बल्कि सामाजिक स्तर पर। सामाजिक स्तर पर लोगों से मिल कर बात करके तनाव से मुक्त नहीं तो कम से कम हल्का तो हुआ ही जा सकता है।



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