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तबेले का दूध आपके घर


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जोगेश्वरी - दूध को पूरक आहार माना जाता है। बड़े बुजुर्ग दूध पीने की सलाह देते हैं। लेकिन आपको यह दूध तबेले कैसे आपके घर तक पहुंचता है इसकी इसकी जानकारी हम आपको दे रहे हैं। तस्वीर में दिख रहा यह तबेला जोगेश्वरी पश्चिम में स्थित है। इस तबेले में करीब हजार की संख्या में भैंसे हैं और 20 से 25 काम करने वाले लोग। इन तबेले वालों का काम सुबह चार बजे ही शुरू हो जाता है। तबेले में काम करने वाले लोग तड़के ही भैंसों को दुहने का काम शुरू कर देते हैं। इन भैंसों को दुहने का काम दिन में दो बार होता है। एक बार सुबह तो दूसरी बार शाम को। भैसों को दुहने का काम भी रोचक है। पहले भैंस के थन में भैंस के बच्चे का मुंह लगाया जाता है जब बच्चा दूध पीने लगता है तो दूध दुहने वाला समझ जाता है कि दूध थन में उतर चुका है और वह बाल्टी में दूध दुहना शुरू कर देता है। उसके बाद इन दूधों को बड़े-बड़े कैन में इकट्ठा किया जाता है, जहां से इन्हें दुकान में पहुंचाया जाता है। कई दुकानदार और ग्राहक तो खुद आकर दूध ले जाते हैं।
हर भैंस को उसके नंबर से पहचाना जाता है। हर भैंस के कान में एक नंबर प्लेट लगा होता है। जिससे भैसों की गणना में आसानी होती है। यहां तबेलों में भैंसों के खाने का भी इंतजाम किया जाता हैं। गट्ठर के रूप में चारे के बड़े-बड़े ढेर लगे होते हैं। ये सूखे चारे होते हैं। भैसों को चारे के रूप में सूखा और गीला चारा दिया जाता है। इसके साथ ही इन्हें अनाज और घास भी खिलाई जाती है। इन्हें गर्मी में दो बार तो ठंडी के एक बार नहलाया भी जाता है। एक भैंस एक दिन में 6 लीटर दूध देती है।

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