मराठा आरक्षण को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। बुधवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने सवाल उठाया कि मराठा आरक्षण को लेकर जिस आयोग की स्थापना की गयी थी उसका कामकाज कहां तक पहुंचा है? अब तक सरकार की तरफ से इस पर क्या काम किया गया है?
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विद्यार्थियों का भविष्य होगा प्रभावित
आपको बता दें कि मराठा आरक्षण को लेकर याचिका दाखिल की गयी थी, जिसमें यह मांग की गयी है कि शिक्षा सत्र में दाखिल लेने के पहले से ही इस मामले का निर्णय कोर्ट को सुना देना चाहिए क्योंकि अगर सत्र के बाद एडमिशन लेने पर तो बच्चों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। याचिका के मुताबिक मराठा आरक्षण पिछले ढाई साल से लटका हुआ है। राज्य और पिछड़ा वर्ग आयोग को समय पर इस बाबत आदेश देना चाहिए। इससे विद्यार्थियों का भविष्य प्रभावित हो रहा है।
यह याचिका आर.आर पाटिल फाउंडेशन के अध्यक्ष विनोद पाटिल के वकील एडवोकेट विजय किल्लेदार एयर एडवोकेट सुनील इनामदार ने दाखिल कियाथा। जिसकी सुनवाई न्यायमूर्ती रणजित मोरे और न्यायमूर्ती अनुजा प्रभू-देसाई की खंडपीठ ने किया।
आयोग की बढ़ाई गयी समय सीमा
मराठा आरक्षण को लेकर राज्य सरकार ने रिटायर्ड जज एस.बी म्हसे की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया है। यह आयोग मराठा और आरक्षण की स्थिति को लेकर अध्ययन करेगा। लेकिन इस आयोग ने अभी तक अपनी रिपोर्ट पेश नहीं की है जिससे आयोग को और भी समय दिया गया है।
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