राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के सीनियर नेता अजीत पवार (Ajit pawar) को 70 हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले (Irrigation Scam) में शुक्रवार को एक और बड़ी राहत मिली है। एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने अजीत पवार को एक और मामले में क्लीन चिट दे दी है। आपको बता दें कि अभी हाल ही में इसी मामले से जुड़े ACB ने अजीत पवार को क्लीन चिट देते हुए 9 मामलों को बंद कर दिया था। ACB ने इन सभी मामलों में पवार की संलिप्तता से इनकार किया है।
'पवार के खिलाफ कोई सबूत नहीं'
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में शुक्रवार को दायर एक और हलफनामे में उन्हें विदर्भ इरिगेशन डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (वीआईडीसी) से जुड़े प्रोजेक्ट में हुए कथित घोटाले में क्लीनचिट दिया है।
एसीबी की ओर से अदालत में दिए गए एफिडेविट में कहा गया है- 'जहां तक अजित पवार की भूमिका की बात है, स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम की जांच के दौरान कोई आपराधिक जिम्मेदारी नहीं पाई गई है।'
इसके पहले अभी हाल ही में इसी बेंच के सामने एसीबी ने पहले भी एफिडेविट दाखिल किया था, जिसमें विदर्भ क्षेत्र में सिंचाई परियोजनाओं को मंजूरी देने में हुई अनियमितता में भी पवार की भूमिका खारिज की गई थी। यह एफिडेविट 27 नवंबर को दी गई थी, जिसके अगले ही दिन शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की महा विकास अघाड़ी सरकार सत्ता में आई थी।
'मंत्री को बचाने की कोशिश'
अजित पवार को मिली इस क्लीन चिट को लेकर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि, “बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सिंचाई घोटाले मामले आज जो एफिडेविट ACB ने दायर किया है उसे हम खारिज करते हैं। इस एफिडेविट के जरिये मंत्री को बचाने की कोशिश चल रही है और पूरी जिम्मेदारी सेक्रेटरी पर डालने की कोशिश है।”
गौरतलब है कि अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ है जब फडणवीस और अजित पवार ने साथ मिलकर क्रमश: मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री की शपथ ली थी।
क्या था मामला?
सिंचाई घोटाले में साल 2012 में पहली बार जांच होने पर 35 हजार करोड़ रुपये घोटाले होने की बात सामने आई थी। जिसके बाद तत्कालीन मुख्य अभियंता विजय पांढरे ने घोटाले से जुडी रिपोर्ट राज्यपाल और मुख्यमंत्री को सौंपी थी। इसके आधार पर एडवोकेट श्रीकांत खंडालकर ने कोर्ट में याचिका दायर कर गोसीखुर्द सिंचाई परियोजना घोटाले की सीबीआई जांच कराने की मांग की थी। इसके बाद जनमंच नामकी एनजीओ ने भी कोर्ट में विदर्भ क्षेत्र सिंचाई घोटाले से जुडी याचिका दायर कर इस घोटाले को 70 हजार करोड़ रुपये का घोटाला बताया और इसकी सीबीआई जांच कराने की मांग की। उस समय यानी 1999 से 2014 के दौरान अजित पवार के पास महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन सरकार में सिंचाई विभाग की जिम्मेदारी थी।