लोकसभा चुनाव में बीजेपी की स्थिति को देखते हुए महाराष्ट्र में उसके नेतृत्व पर सवालिया निशान लगने की आशंका है। कुल 28 सीटों में से बीजेपी सिर्फ 10 सीटें ही जीत सकी। बीजेपी को भरोसा था कि वे अच्छा प्रदर्शन करेंगे। लेकिन हुआ ऐन उलटा।
बीजेपी ने हिंदुत्व का मुद्दा उठाकर चुनाव लड़ा। उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस राज्य में चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए थे। उम्मीद थी कि फड़णवीस राज्य भर में 116 विधानसभाओं के साथ भाजपा की 28 सीटों में से 23 सीटें बरकरार रखेंगे। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने खुलासा किया, "2019 के चुनावों के बाद, महाराष्ट्र शुरू से ही उथल-पुथल में था।"
गठबंधन सहयोगियों के बीच सत्ता संघर्ष
25 साल पुराने सहयोगी दल उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को बरकरार रखने में पार्टी की विफलता घातक साबित हुई। गठबंधन सहयोगियों के बीच सत्ता संघर्ष ने कार्यकर्ताओं के मनोबल को प्रभावित किया। दूसरे, चुनाव जीतने की केंद्रीय नेतृत्व की महत्वाकांक्षा ने राकांपा में विभाजन पैदा कर दिया, जिसे भाजपा कैडर पाट नहीं सका।
मराठा बनाम ओबीसी आरक्षण की राजनीति से पैदा हुई अशांति के लिए राज्य नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया गया।विपक्षी नेताओं को निशाना बनाकर बदले की राजनीति करने से भाजपा की छवि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। अलग पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी ने केवल उन्हीं नेताओं को पार्टी में शामिल किया है, जिन पर उसने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं।
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