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झटका : मोफा एक्ट के अंतर्गत बिल्डर को 2 साल की सजा

बिल्डर पिछले 21 साल से अपने सोसायटी कन्वेयन्स देने में आनाकानी कर रहा था.

झटका : मोफा एक्ट के अंतर्गत बिल्डर को 2 साल की सजा
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एकबिल्डर को अपने ग्राहकों से धोखा करना काफी महंगा पड़ गया। विक्रोली की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने बिल्डर को 2 साल की सजा सुनाई। यह बिल्डर पिछले 21 साल से अपने सोसायटी कन्वेयन्स देने में आनाकानी कर रहा था। आपको बता दें कि अगर बिल्डिंग की 60 फीसदी घरों की बिक्री हो जाने पर और सोसायटी बन जाने पर बिल्डर को छह महीने के अंदर मोफा (महाराष्ट्र ओनरशिप फ्लैट्स एक्ट) कानून के अंतर्गत अभिहस्तांतरण अर्थात कॉन्वेयन्स देना अनिवार्य होता है।

क्या था मामला?

घाटकोपर पूर्व स्थित गायत्री धाम सोसायटी का प्रोजेक्ट साल 1989 में ही पूरा हो गया था। साल 1996 में इसकी सोसायटी का रजिस्ट्रेशन भी हो गया। सोसायटी बनने के बाद बिल्डर को कॉन्वेयन्स देना अनिवार्य होता है लेकिन बिल्डर ने आज तक सोसायटी को कन्वेयन्स नहीं दिया, यानी पूरे 21 साल बाद तक।

कोर्ट की राह पकड़ी

कॉन्वेयन्स लेने के लिए गायत्री धाम सोसायटी वालों ने लगातार बिल्डिंग के मालिक व सैटेलाइट डेवलपर समूह के संचालक किरण पोपटलाल अमिन के पास से सम्पर्क भी कर रहे थे, लेकिन बिल्डर कुछ ध्यान नहीं दे रहा था। आखिरकार बिल्डिंग के ही एक रहिवासी रविंद्र हिंगवाल ने 2006 में बिल्डर के खिलाफ कोर्ट से गुहार लगाई। कोर्ट की सुनवाई में विक्रोली कोर्ट ने उक्त बिल्डर को मोफा कानून के अंतर्गत दोषी पाते हुए किरण पोपटलाल अमिन को 2 साल की सजा सुनाई।

कन्वेयन्स क्यों है जरुरी

अगर सोसायटी के पास कन्वेयन्स नहीं है तो उसे कई मामलों में परेशानी हो सकती है। कन्वेयन्स होने से सोसायटी के पुनर्विकास का कमा होता है और महत्वपूर्ण बात यह है कि कन्वेयन्स के मिलने के बाद इमारत के जमीन का मालिकाना हक़ सोसायटी के पास आ जाता है। ऐसे बिल्डरों पर लगाम लगाने के लिए राज्य सरकार ने डीम्ड कन्वेयन्स यानी मानवी अभीहस्तांतरण कानून ला रही है, उस पर काम चालू है। इस कानून के आ जाने से कई सोसायटियों को कन्वेयन्स मिल सकेगा।






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