हमारे समाज में हर दिन को खास तौर पर याद करने के लिए दिवस नाम की सभ्यता का अविष्कार हुआ है। मां के प्रति अपने प्रेम को दिखाने के लिए मातृ दिवस यानी की मदर्स डे, पिता के लिए फादर्स डे, प्रेमिका ले लिए वैलनडाइन डे, और हिंदी भाषा को मनाने के लिए हिंदी डे यानी की हिंदी दिवस। 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
मुंबई की तो अपनी अलग ही हिंदी है साहेब!
मुंबई को सपनों की नगरी कहा जाता है, यहां आनेवाले और रहनेवाला हर शख्स अपनी आंखों में कोई मा कोई सपने लिये रहता है। लेकिन वो कहते है ना जैसा देश वैसा भेष, तो देश के हर कोने में रहनेवालो में हिंदी भाषा को अपने अपने हिसाब के मोड़ दिया और एक नई भाषा को इस धरती पर अवतरीत किया, हालांकी ये भाषा किसी पुस्तक या फिर किसी भी ग्रंथ में नहीं मिलेगी , लेकिन लोगों के जुबान पर आपको ये भाषा हमेशा से ही मिलेगी।
मुंबईया की हिंदी भाषा
मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है, लेकिन यहां रहनेवाले लोगों ने हिंदी भाषा से कुछ ऐसे ऐसे शब्दों का अविष्कार किया है जो आज पूरे देश में कही ना कही बोली जाती है। 'और भिड़ू क्या चलरेला है' ये लाइन दुनिया के किसी भी डिक्शनरी या फिर शब्दसंग्रालहय में आपको नहीं मिलेगी , लेकिन मुंबई के ज्यादातर युवक इस लाइन को बोलते है। दलअसल इस शब्द का मतलब होता है ' और भाईसाहब क्या चल रहा है'। और आगे बात की जाए तो दूसरा लाइन आता है ' अपुन को येईच आता है' ये वाक्य भी आपको दुनियां की किसी भी डिक्शनरी में नहीं मिलेगा, चाहे दुनियां के किसी भी देश के किसी भी लाइब्रेरी में अपना माथा ही क्यों ना फोड़ ले, लेकिन ये सिर्फ आपको मुंबई में ही सूनने मिलेगा, और इस वाक्य का मतलब होगा है हमे तो यही आता है।
हिंदी को जगह जगह के हिसाब से बदला गया
देश के कोने कोने में हिंदी भाषा बड़े या छोड़े पैमाने पर बोली जाती है, हालांकी कईयों का मानना है की दक्षिण भारत में हिंदी समझनेवाले और बोलनेवालो लोगों की संख्या काफी कम है, लेकिन दक्षिण में बोलेजानेवाली भाषा और हिंदी दोनों को संस्कृत से ही लिया गया है। हिंदी बोलने वालों की संख्या के अनुसार अंग्रेजी और चीनी भाषा के बाद पूरे दुनिया में चौथी सबसे बड़ी भाषा है। लेकिन उसे अच्छी तरह से समझने, पढ़ने और लिखने वालों में यह संख्या बहुत ही कम है।
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