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अब आएगी बाढ़ तो जिम्मेदार कौन?


अब आएगी बाढ़ तो जिम्मेदार कौन?
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अगर मैं कहूं कि मुंबई में एक या दो नहीं बल्कि चार नदियां थीं तो आपको आश्चर्य होगा। लेकिन, हां यह सच है। हमारे शहर में चार नदियां थी, पर अब ये नालों में तब्दील हो गई हैं। अब ये गटर के गंदे पानी के साथ बहती हैं। इन नदियों के नाम दहिसर, ओशिवरा, पोइसर, और मीठी नदी हैं। 2005 की बाढ़ में मीठी नदी उफान पर थी। हमने इन नदियों की वर्तमान स्थिति जानने के लिए दौरा किया और हमारे सामने चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।


नदियां जो नालों में बदल गईं



दहिसर नदी


दहिसर नदी का स्रोत संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान है, यह नदी एसजीएनपी से श्रीकृष्णनगर, दौलत नगर, कंदरपाडा, संजय नगर, दहिसर से बहती है और फिर यह मनोरी के अरब महासागर में मिलती है।

जब यह नदी एसजीएनपी से निकलती है तब इसका पानी साफ सुथरा रहता है, लेकिन जब वह शहर में प्रवेश करती है, तो प्लास्टिक अपशिष्ट, नालियों और सीवरेज से भर जाती है। एसजीएनपी के विपरीत कई तबेला हैं, सभी जानवरों का मल कचरा आदि पानी में मिलता है जो नदी के पानी को गंदा करता है।


नाम ना छापने की शर्त पर कृष्णा आवास सोसायटी के निवासी ने कहा, तबेलों के मालिक न केवल जानवरों के मलमूत्र नदी में बहाते हैं बल्कि कभी-कभी वे मृत जानवरों को भी नदी में फेंक देते हैं। खासकर मॉनसून के दौरान यह ज्यादा होता है।

दहिसर नदी संजय नगर और पुष्पा विहार से बहती है जहां पर अवैध झोपड़े देखने को मिलते हैं, जो अवैध तरीके से बनाए गए हैं। 2005 की बाढ़ के बाद से संजय नगर के आसपास बीएमसी की सुरक्षा दीवार बनाई गई। पर यहां पर कोई सुरक्षा दीवार दिखाई नहीं दी। इसलिए जब तेज बारिश होती है तो इन झोपड़ों में पानी भरने लग जाता है और लोग डर जाते हैं। जब हमने दहिसर नदी का दोरा किया तो इस दौरान नदी में हमें मरा हुआ बैल भी मिला।

कृष्णा बिल्डिंग निवासी शांति नाम की महिला ने बताया कि बीएमसी नदी की सफाई का काम आधा अधूरा ही करती है। नदी से जो कीचड़ निकाला जाता है उसे नदी के किनारे ही रख दिया जाता है और बारिश आते ही यह कीचड़ वापस नदी में मिल जाता है। जब हम और आगे बढ़े तो हमें किनारे पर धोबी घाट मिला यह भी नदी के प्रदूषण के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है।


पोइसर नदी

पोइसर नदी का उदगम संजय गांधी नेशनल पार्क से है। संजय गांधी उद्यान से निकलने वाली यह नदी आप्पा पाडा, क्रांती नगर, कुरार गांव, हनुमान नगर, महिंद्रा एंड महिंद्रा स जाते हुए मालाड की खाड़ी में समा जाती है। कभी इस नदी में लोग तैरने के लिए आया करते थे। साथ ही इसका पानी इतना साफ था कि लोग इस पानी को पीते थे। पर नदी के किनारे किनारे झोपड़े बनते गए और नदी का साफ पानी गटर के गंदे पानी में तब्दील होता गया। और नदी ने नाले का रूप धारण कर लिया। समता नगर, ठाकुर कॉम्प्लेक्स, जोगलेकर नाला, मजिठिया नाला इस नदी से जोड़ दिए गए हैं। जिसकी वजह से इन नालों का गंदा पानी नदी में बह रहा है। 1985 में इस नदी में बाढ़ आई थी। और इस बाढ़ में मोहितेवाडी उद्धवस्त हो गया था।

पोइसर नदी को फिरसे उसी रूप में जिंदा करने के लिए कांदिवली के निवासियों ने बीड़ा उठाया है। पिछले साल उन्होंने यह निर्णय लिया था। तबसे काम भी जारी था। लेकिन बाद में फिर वैसे ही परिस्थिति जन्म ले लेती है। फिर भी कांदिवली निवासियों ने हार नहीं मानी और 'रिवर मार्च' संस्था की मदद से पोइसर नदी के किनारों में रहने वाले लोगों के बीच जनजागृति फैलाने का काम किया है।

रहिवासी अंकुश चव्हाण का कहना है कि एक वक्त था जब हम इस नदी का पानी पिया करते थे। पर आज स्थिति बत्तर है इसकी वजह लोगों का नदी के किनारे बड़ी संख्या में बसना और गंदगी करना है।


ओशिवरा नदी


ओशिवरा नदी की स्थिति दूसरी नदियों की तुलना में बेहद दयनीय है। आरे से आने वाली यह नदी गोरेगांव के नागरी निवारा, राम मंदिर, ओशिवरा, भगतसिंह नगर से बहते हुए मालाड की खाड़ी में समा जाती है। मालाड में बहुत से ऐसे कॉलसेंटर हैं जो नदी के किनारे पर बनाए गए हैं। साथ ही आरे के तबेलों से मलमूत्र आदि नदी में छोड़ा जाता है जो नदी को गंदा करते हैं।  औद्योगिक क्षेत्र होने की वजह से रासायनिक द्रव्य, झोपड़ों का कचरा गंदा पानी भी नदी में जाकर मिलता है।


मीठी नदी


मीठी नदी ने अपना असली रंग 26 जुलाई को दिखाया था, उस वक्त नदी पूरे उफान में थी। कचरा, अतिक्रमण से नदी का दम घुटने लगा था आखिरकार नदी ने इस सबको खुद से निकाल बाहर किया था। 16 से 20 फुट तक इस नदी में पानी ही पानी था। इस प्रलय में कइयों ने अपनी जान गंवाई तो कईयों ने अपना आशियाना खोया। पर इसके लिए क्या हम सिर्फ नदी को जिम्मेदार ठहराएंगे?

लगभग 100 साल पहले मीठी नदी मुंबई का सौंदर्य स्थल था। बोरीवली नैशनल पार्क स्थित विहार तालाब से निकने वाली यह नदी आरे कॉलोनी, पवई तालाब के एल एंड टी, जेवीएलआर, सीप्झ, एयरपोर्ट, बांद्रा -कुर्ला कॉम्प्लेक्स मार्ग से होते हुए माहिम खाडी अरब सागर में समाती है। आज भी इस नदी का जहां से उदगम है वहां से स्वच्छ पानी लेकर आती है, पर आगे चलकर इस दूषित कर दिया जाता है। शहरीकरण और औद्योगिकीकरण इस नदी के विनाष का प्रमुख कारण हैं।  


जो बची कुची कसर थी वह बांद्रा-वरली सी-लिंक ने पूरी कर दी है। बांद्रा-वरली सी-लिंक की वजह से मीठी नदी के पानी का 80-85 हिस्सा रुक जाता है। 26 जुलाई की बाढ़ के लिए सबसे बड़ा कारण है बांद्रा-वरली सी-लिंक। मुंबई की चारो नदियों की हालत एक जैसी है। नदियों पर होने वाले अतिक्रमण, आसपास के परिसर में कारखानों का निर्माण, दूषित पानी, छोटे-छोटे नालों का पानी, नदी में डाली जाने वावी प्लास्टिक, कचरा यह सब नदी को नाले में परिवर्तित करने के लिए जिम्मेदार है। इस सभी का असर तापमान पर और एकसाथ मिलकर पर्यावरण पर पड़ता है। इसको रोकने के लिए औद्योगिकीकरण और शहरीकरण पर नियंत्रण कसना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो विनाष के लिए हम खुद ही जिम्मेदार होंगे।    

- गिरीष राऊत, पर्यावरण विशेषज्ञ


नदियों की स्वच्छता के लिए 'रिवर मार्च' की पहल


मुंबई की चार नदियां शहर के बीचों बीच बहती हुई समुद्र में जाकर मिलती हैं। जहां से इन नदियों का उदगम होता है वहां पर पानी साफ-स्वच्छ होता। यह जिंदा नदी नेशनल पार्क से बाहर निकलते ही मृत अवस्था में आ जाती है। मुंबई के शहरीकरण और कांक्रेटायजेशन ने नदी के प्रवाह को सिकोड़ दिया है। और ऊपर से दुनियां भर का कचरा नदियों में बहाया जा रहा है। आगे जाकर यह पानी समुद्र में जाकर मिलता है। जहां पर नदी अपना सारा कचरा खाली कर देती है। बाद में बहकर यही कचरा समुद्री किनारों पर आता है। कहीं ना कहीं इस चक्र का रुकना आवश्यक है। इसके लिए 'रिवर मार्च' संस्था ने अपने कदम आगे बढ़ाए हैं। चार मित्रों द्वारा शुरु की गई इस स्वच्छता मुहिम को अच्छा खासा प्रतिसाद मिला। संजय गांधी नैशनल पार्क में मॉर्निंग वॉक करते वक्त मृत अवस्था में पाए गए हिरण के पेट से लगभग 3 किलो प्लास्टिक मिला। यहीं से 'रिवर मार्च' की शुरुआत हुई।



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