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महाराष्ट्र में शिवसेना-कांग्रेस की घटती ताकत, मजबूत होती NCP

भाजपा (bjp) को सत्ता से दूर रखने के लिए शिवेसना ने जो पैतरा खेला, उससे शिवसेना का मुख्यमंत्री जरूर बन गया लेकिन सरकार बनने से लेकर अब तक एक भी दिन बतौर मुख्ममंत्री उद्धव ठाकरे चैन की नींद नहीं सो पाए।

महाराष्ट्र में शिवसेना-कांग्रेस की घटती ताकत, मजबूत होती NCP
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महाराष्ट्र (Maharashtra) में सत्तारूढ़ शिवसेना-राकांपा तथा कांग्रेस इन तीन दलों की सम्मिलित सरकार की कमान भले ही शिवेसना प्रमुख उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) के हाथ में हो लेकिन दिन ब दिन बदलते हालातों को देखते हुए यह कहा जाने लगा है कि आने वाले दिनों में शिवसेना और कांग्रेस की स्थिति कमजोर होने के आसार व्यक्त किए जाने लगे है। कहा जा रहा है कि शरद पवार (sharad pawar) की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (ncp) की स्थिति शिवसेना के मुकाबले ज्यादा अच्छी होगी। राज्य की महाविकास आघाडी (mahavikas aghadi) की सरकार के गठन में भले ही राकांपा प्रमुख शरद पवार ने अहम भूमिका अदा की हो लेकिन सरकार में वर्चस्व के साथ-साथ राकांपा के नेताओं की जिस तरह की सक्रियता देखी जा रही है, उससे यह साफ होता है कि राकांपा के नेता शिवसेना (shiv sena) के साथ रहकर राज्य की राजनीति में अपनी ताकत ज्यादा बढ़ा रहे हैं।

2019 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में सामने आए भाजपा (bjp) को सत्ता से दूर रखने के लिए शिवेसना ने जो पैतरा खेला, उससे शिवसेना का मुख्यमंत्री जरूर बन गया लेकिन सरकार बनने से लेकर अब तक एक भी दिन बतौर मुख्ममंत्री उद्धव ठाकरे चैन की नींद नहीं सो पाए। 

अपने सिद्धांतों की बलि देकर राकांपा तथा कांग्रेस (Congress)से हाथ मिलाकर शिवसेना ने अपनी जिद्द तो पूरी कर ली, लेकिन अपनी जिद्द पूरी करने के लिए उसने जो रास्ता चुना, उससे शिवसेना के परंपरागत मतदाता तो उससे नाराज हुए ही हैं साथ ही लंबे समय तक सहयोगी दल की भूमिका में रही भाजपा से उसकी ऐसी अनबन हो गई है कि आने वाले समय में शिवसेना की हालत और ज्यादा खराब होगी।

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कांग्रेस-राकांपा के साथ हाथ मिलाकर सत्ता पाने वाली शिवसेना ने जहां एक ओर अपने परंपरागत मित्र भाजपा से बैर मोल ले लिया है, वहीं दूसरी ओर शिवसेना के परंपरागत वोटर भी शिवसेना की इस रणनीति से बहुत आहत हैं। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को भले ही यह लग रहा हो कि वे बहुत अच्छी तरह से सरकार चला रहे हैं तो वे शायद भ्रम में जीवन जी रहे हैं। मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे का चेहरा पसंद करने वालों की संख्या बहुत कम है, जो लोग मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा से नाता तोड़ने के शिवसेना के फैसले को गलत करार दे रहे हैं, उनका कहना है कि शिवसेना ने सत्ता के लिए जो गलत मार्ग चुना, उससे राज्य में उसकी साख पर बट्टा लगेगा।

कोरोना महामारी (Corona pandemic) के खिलाफ जारी जंग में सरकार की विफलता को जिस तरह से राज्य के प्रमुख विरोधी दल भाजपा की ओर से जनता तथा मिडिया के सामने रखा जा रहा है, उससे यह कहना मुश्किल नहीं कि भाजपा-शिवसेना के बीच के रिश्ते अब पहले जैसे नहीं रहे। माना कि चुनाव में हार जीत होती रहती है। सत्ता के गणित बनते-बिगड़ते रहते हैं। शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद पाने के लिए जो रास्ता चुना उस रास्ते को बहुत से लोगों ने गलत करार दे दिया है। वर्तमान उपमुख्यमंत्री अजित पवार (ajit pawar) का पावर कभी-कभी इतना ज्यादा दिखायी देने लगता है कि मानो अजित मुख्यमंत्री हैं। पहले कांग्रेस तथा अब शिवसेना-कांग्रेस दोनों को साथ लेकर सत्ता का स्वाद चखने वाली राकांपा के नेताओं के मन में लगातार यह सवाल उठ रहा होगा कि अब तक उनकी पार्टी का कोई भी नेता मुख्यमंत्री क्यों नहीं बना।

हालांकि कुछ दिनों पूर्व यह चर्चा उठी थी कि शरद पवार अपनी सुपुत्री सुप्रिया सुले (supriya sule) को राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, लेकिन शरद पवार के भतीजे तथा राज्य के वर्तमान उप मुख्यमंत्री अजित पवार को शरद पवार की यह कोशिश नागवार गुजरी और उन्होंने बगावत का बिगुल बजा दिया। अजित पवार के बागी तेवर से शरद पवार परेशान हुए और उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। अजित पवार ने महाविकास आघाडी के सत्तारूढ़ होने से पहले ही भाजपा के साथ हाथ मिलाकर देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री पद की शपथ के साथ स्वयं उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी। अजित पवार की इस हरकत से राकांपा सुप्रिमो शरद पवार नाराज तो हुए लेकिन उन्हें इस बात का एहसास भी हुआ कि कोई तो ऐसा है जो उनके फैसलों का भी विरोध कर सकता है, लिहाजा शरद पवार ने बड़ी शालीनता से निर्णय लिया और अजित पवार की मनाकर उन्हें नई सरकार में उप मुख्यमंत्री बनाया।

अगर 2024 में होने विधानसभा चुनाव (assembly election 2024) की बात करें कुछ ऐसी तस्वीर दिखायी देती है कि इस चुनाव में मुख्य मुकाबला राकांपा-भाजपा के बीच होगा। शिवसेना ने जिस तरह सत्ता प्राप्त की है, उससे उसका जनाधार पहले की तुलना में बहुत घटा है। दूसरी तरफ सबसे अधिक सीटें पाने के बावजूद सत्ता से बाहर रही भाजपा लगातार यही बता रही है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे बतौर मुख्यमंत्री किस तरह से एक निष्क्रीय मुख्यमंत्री साबित हुए हैं। भाजपा के पास शिवसेना के खिलाफ वातावरण बनाने में एक नहीं अनेक कारण हैं और इसीलिए भाजपा नेता विशेषकर विधानसभा में विरोधी पक्ष नेता तथा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (devendra fadnavis) लगातार शिवसेना को आड़े हाथ लेते रहते हैं। अगर नेताओं की अधिकता तथा परिपक्वता के लिहाज से देखा जाए तो आज की तारीख में राकांपा के मुकाबले किसी दूसरी पार्टी के पास इतनी बड़ी संख्या में अनुभवी नेता नहीं हैं।

राकांपा का पूरा संचालन शरद पवार, अजित पवार और कुछ हद तक शरद पवार की सुपुत्री सुप्रिया सुले पर है, इनके अलावा राकांपा में किसी और नेता की कोई हैसियत नहीं है, जबकि सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे सिर्फ घोषणा मुख्यमंत्री बन कर रह गए हैं। क्या सही है और क्या नहीं, इस पर चिंतन न करके जो कहा जा रहा है, वह करें, कुछ इस तरह का काम बतौर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे कर रहे हैं, जो न तो शिवसेना की आक्रमकता की दृष्टि से ठीक है और न ही स्वयं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के लिहाज से, लेकिन सत्ता पिपासा में अंधे हुए उद्धव ठाकरे यह नहीं सोच पा रहे हैं कि वे किस तरह की शिवसेना को राज्य की जनता के सामने रख रहे हैं। जहीं तका कांग्रेस का सवाल है, कांग्रेस का बहुत से मुद्दों पर शिवसेना से ज्यादा विरोध रहा है। ऐसे में शिवेसना- कांग्रेस ये दोनों ही दल आगामी विधानसभा चुनाव में पिछले चुनाव की तुलना में स्थिति और ज्यादा खराब होगी।

शरद पवार तो राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं, जब भी स्थिति अनुकूल होगी, वे शिवसेना को किक मारकर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने में कोई हिचक महसूस नहीं करेंगे। राकांपा के अजित पवार तो कभी-भी, कुछ भी कर सकते हैं, ऐसे में अगर यह कहा जाए आने वाले दिनों में भाजपा और राकांपा ही ज्यादा मजबूत स्थिति में होंगे, जहां तक संख्या बल का सवाल है, राकांपा और शिवसेना में सीटों का फासला सिर्फ दो का है और अगर अगले विधानसभा चुनाव में राकांपा ने शिवसेना को पीछे छोड़कर अपना मुख्यमंत्री बना लिया तो शिवसेना के लिए आगे की डगर बहुत मुश्किल होगी और राकांपा के लिए वह समय आगे बढ़ने का सबसे ज्यादा अनुकूल समय होगा। देवेंद्र फडणवीस से साथ अजित पवार की छुपी दोस्त क्या रंग लाती है, इसे प्रदेश की जनता ने वर्तमान की महाविकास आघाडी सरकार के गठन से पहले देख चुकी है।

Note: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं।

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