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कमल की छत्रछाया में पुष्पित पल्लवित होने को तैयार एनसीपी?


कमल की छत्रछाया में पुष्पित पल्लवित होने को तैयार एनसीपी?
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राजनीति में एक सार्वभौमिक नियम है कि अगर आपका दुश्मन आपसे अधिक ताकतवर है तो उससे दोस्ती जोड़ लो। इस नियम पर दुनिया के सभी बड़े से बड़े और छोटे से छोटे नेता अमल करते हैं। अगर भारत के संदर्भ में बात करें तो इसमें कोई शक नहीं इस समय आधे भारत से अधिक राज्यों में बीजेपी की सरकार है यानी बीजेपी सबसे अधिक ताकतवार पार्टी है। अब सबसे अधिक ताकतवर और केंद्र में सत्तानशीं होने के कारण भारत की अन्य क्षेत्रीय पार्टियाँ बीजेपी से हाथ मिलाना चाहेंगी। इसका ताजा उदाहरण है बिहार, जहां सही समय देख कर नितीश बाबू ने एनडीए से हाथ मिला लिया। इसके पहले तक तो बीजेपी और जेडीयू का 'चुनावी दंगल' दुनिया ने देख चुकी है। अगर महाराष्ट्र के संदर्भ में बात करें तो अभी हाल ही में एनसीपी के एक बड़े नेता ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की थी, इससे राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि क्या एनसीपी एनडीए घटक का हिस्सा बनने जा रही है। महाराष्ट्र में जिस तरह की राजनीतिक घटनाक्रम घट रहे हैं कयास लगाये जा रहे हैं कि महाराष्ट्र राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार एनडीए घटक का हिस्सा बन सकते हैं।

महाराष्ट्र में अभी हाल ही में हुए निकाय चुनाव में बीजेपी बहुमत में आई है जबकि एनसीपी का खाता भी नहीं खुला। यही नहीं महाराष्ट्र के निकाय चुनाव हो या राज्य या फिर केंद्र इन सभी स्थानों पर बीजेपी या एनडीए की सरकार है। ऐसी स्थिति में एनसीपी महाराष्ट्र में हाशिये पर आ गयी है और वह इससे निकलने के लिए छटपटा रही है। एनसीपी गाहे बगाहे कई बार खुले तौर पर भी और पर्दे के पीछे से भी बीजेपी के लिए अपना 'राजनीतिक प्यार' जाता चुकी है।

2014 में विधानसभा चुनाव में बीजेपी राज्य में सबसे अधिक सीटें जीत कर भी बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पायी थी, उसके बाद एनसीपी ने समर्थन देने की बात कही थी। हालांकि शरद पवार ने उस समय यह दावा किया था कि राज्य में एक स्थिर सरकार बनी रहे और राज्य को फिर से खर्चीली चुनाव पद्धति का सामना न करना पड़े इसके लिए उन्होंने बीजेपी को समर्थन देने की बात कही है।

यही नहीं अभी कुछ समय पहले जब दिल्ली में युपीए के घटक दलों की बैठक हो रही थी तब उस बैठक में एनसीपी ने हिस्सा नहीं लिया था। साथ ही राज्यसभा चुनाव में भी एनसीपी ने कांग्रेस उम्मीदवार को वोट नहीं देने का निर्णय किया था।

1999 से 2014 तक यानी इन 15 सालों तक एनसीपी राज्य में कांग्रेस के साथ सत्ता का सुख भोगती रही है। अब एकाएक सत्ता के बाहर हो जाना इन नेताओं को पच नहीं रहा है। एनसीपी प्रदेशाध्यक्ष सुनील तटकरे जब मुंबई लाइव के कार्यालय में आए थे तभी उन्होंने इस बात की घोषणा कर दी थी। बीजेपी राज में एनसीपी को इस बात का भी डर है कि सिंचाई घोटाले की आंच में कही उनकी पार्टी के और नेता भी न झुलस जाए, नहीं तो जो हाल छगन भुजबल का है वही हाल घोटाले के आरोप में पूर्व उप मुख्यमंत्री अजित पवार और प्रदेशाध्यक्ष सुनील तटकरे के साथ भी हो सकता है।

दिनों दिन एनसीपी अपनी नजदीकियां बीजेपी के साथ बढ़ा रही है। चाहे वह केंद्र स्तर पर हो या राज्य स्तर पर। शायद एनसीपी को इस बात का लालच है कि एनडीए का घटक दल बनने के बाद सिंचाई घोटाले की जांच झेल रहे उनके आला नेताओं पर थोड़ी मेहरबानी हो सकती है, इसके साथ ही उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में कोई मंत्री पद का ऑफर भी मिल सकता है।

हालांकि बीजेपी में इस बार पर भी मंथन चल रहा है कि एनसीपी को एनडीए के घटक पक्ष के तौर पर स्वीकार किया जाए या नहीं। कुछ दिनों पहले बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने अपने सभी आला नेताओं के साथ मिलकर 2019 के लोकसभा चुनाव की 'रुपरेखा' तैयार की। इस रूपरेखा में यह तय किया गया कि देश के 360 और महाराष्ट्र की 48 में से 28 जगहों पर पर खुद के बल पर जीतने का खाका तैयार किया। यह खाका बीजेपी ने महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी को ध्यान में रख कर ही तैयार किया है।

अब यह बीजेपी पर निर्भर है कि वह कृष्ण बन कर एनसीपी यानी सुदामा का हाथ थामती है या नहीं? एनसीपी एनडीए का हिस्सा बनने के लिए व्याकुल हो रही है लेकिन बीजेपी का क्या रुख रहेगा यह एक यक्ष प्रश्न है।


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