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रेरा कानून के अंतर्गत होने सभी निर्माणाधीन प्रोजेक्ट - बॉम्बे हाईकोर्ट


रेरा कानून के अंतर्गत होने सभी निर्माणाधीन प्रोजेक्ट - बॉम्बे हाईकोर्ट
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मुंबई हाईकोर्ट ने बुधवार को एक सुनवाई में उस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें मांग की गयी थी कि निर्माणाधीन योजनाओं को 'रेरा'(रिअल इस्टेट रेग्युलेटरी एक्ट) में समाविष्ट न किया जाए, यह बिल्डरों के लिए अन्यायपूर्ण होगा। कोर्ट ने अपने इस निर्णय से बिल्डरों को बहुत बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने सुनवाई में यह भी कहा कि अगर किसी योजना को बिल्डर 'रखड़ाता' है तो उसके लिए बिल्डर को अपने ग्राहकों को ब्याज देना पड़ेगा। कोर्ट के इस आदेश को ग्रहकों के लिए बड़ी राहत मानी जा रही है।

बता दें कि पूरे देश भर में 'रेरा' कानून लागू किया गया है। इस कानून के अनुसार बिल्डर के जिस प्रोजेक्ट को 'ओसी' (Occupancy Certificate) नहीं मिला है ऐसे प्रोजेक्ट को अब 'रेरा' में रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा। अगर इस कोई बिल्डर बिना रेरा रजिस्ट्रेशन के अपना प्रोजेक्ट शुरू करता है या घर बेचता है तो ऐसे बिल्डर के खिलाफ कार्रवाई भी होगी।

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सुनवाई 

केंद्र के इस नियम के मद्देनजर मुंबई सहित बंगलौर, जबलपुर, नागपुर, औरंगाबाद जैसे कई स्थानों के बिल्डरों ने यह मांग की थी कि जो प्रोजेक्ट निर्माणाधीन हैं उन्हें 'रेरा' कानून से बाहर रखा जाये, क्योंकि ऐसे प्रोजेक्ट रेरा लागू होने से पहले शुरू हुए थे, इसे रेरा कानून में लाना बिल्डरों के साथ अहितकर होगा। इस संबंध में कई राज्यों के बिल्डरों की तरफ से याचिका भी दाखिल की गयी थी। इन सभी याचिकाओं के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने देश भर की सभी याचिकाओं को एकत्रित कर एक साथ में सुनवाई करने का आदेश मुंबई हाईकोर्ट को दिया था। उसी के अनुसार बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई की। कोर्ट ने बिल्डरों की मांग की ख़ारिज कर दिया और अपने फैसले में कहा कि प्रोजेक्ट चाहे पुराना हो या नया सभी को रेरा कानून के दायरे में लाया जाएगा।

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ग्राहकों को दिलासा

यही नहीं कोर्ट ने ग्राहकों को दिलासा देते हुए यह भी कहा कि अगर कोई बिल्डर के प्रोजेक्ट में देरी होती है तो उसे, जिस दिन से प्रोजेक्ट का काम रुका उस दिन से और घर का कब्ज़ा देने तक, ग्राहक को ब्याज जोड़ कर देना पड़ेगा। माने, कोई बिल्डर 2012 में प्रोजेक्ट शुरू करता है और  ग्राहकों को 2015 में घर देने का वादा करता है लेकिन वह 2015 में भी घर नहीं दे पाता है तो ऐसे बिल्डर को 2015 से लेकर ग्राहक को घर देने तक ब्याज देना पड़ेगा।

इस बारे में मुंबई ग्राहक पंचायत के कार्याध्यक्ष एडवोकेट शिरीष देशपांडे ने कहा कि बिल्डरों की मांग अनुचित है. अगर बिल्डरों की यह मांग पूरी होती है तो वे ग्राहकों से फिर से लूट खसोट शुरू कर देंगे। हाईकोर्ट का यह बड़ा निर्णय है हम इस निर्णय का स्वागत करते हैं।





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