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विश्व हिंदी दिवस : आखिर अपनों के बीच क्यों बेगानी है हिंदी

विश्व में हिंदी का विकास करने और हिंदी को प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से नागपुर में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को आयोजित किया गया था। जिसके बाद इस दिन को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई।

विश्व हिंदी दिवस : आखिर अपनों के बीच क्यों बेगानी है हिंदी
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,

बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।

अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन,

पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।

यह रचना है आधुनिक हिंदी साहित्य के जन्मदाता भारतेन्दु हरिश्चंद्र की। इस रचना में हरिश्चंद्र ने हिंदी भाषा के महत्व के बारे में बताते हुए कहते हैं कि अगर आप विदेशी भाषा पढ़ कर सभी गुणों में महारत हासिल कर लेते हो, लेकिन आप तब तक हीन रहोगे जब तक आपको अपनी खुद की भाषा का ज्ञान नहीं होगा। अपनी भाषा ही सभी उन्नतियों का मूल है।


इस तरह से हुई विश्‍व हिंदी दिवस की शुरुआत

हर साल 10 जनवरी को विश्‍व हिंदी दिवस मनाया जाता है। इसकोे मनाने का उद्देश्य विश्व में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरुकता पैदा करना है। हालांकि विश्व में हिंदी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से नागपुर में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को आयोजित किया गया था। जिसके बाद इस दिन को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। लेकिन इसके काफी सालो बाद यानी 10 जनवरी 2006 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इस दिन को प्रति वर्ष विश्व हिंदी दिवस के रूप मनाए जाने की घोषणा की थी। 1975 से अब तक मॉरीशस, ब्रिटेन, अमेरिका, द. अफ्रीका समेत कई अन्य देशों में यह सम्मेलन आयोजित किया गया है। साल 1881 में बिहार पहला राज्य बना, जिसने हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में चुना था।


हिंदी शब्द की उत्पत्ति

हिंदी शब्द की उत्पत्ति सिंधु से जुड़ी हुई है। सिंधु नदी के आसपास का क्षेत्र सिंध प्रदेश कहलाता है। 11वीं सदी में जब तुर्कों ने पंजाब और गंगा के मैदानी इलाकों पर हमला किया, तब उन्होंने 'हिंद' शब्द का इस्तेमाल स्थानीय लोगों के लिए किया गया था। यही शब्द ईरानियों के संपर्क में आकर बाद में हिंदू या हिंद हो गया। हिंद से ही हिंदीक बना है, जिसका अर्थ है 'हिंद का'।  



रोजगार में सहायक

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत से बाहर लगभग 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में 'हिंदीभाषा-साहित्य' का अध्ययन कराया जाता है। कई विदेशी छात्र हिंदी में शोध कर रहे हैं। कई देशों में जैसे कोरिया, चीन, जापान, रूस, पौलेंड, अमेरिका आदि में हिंदी के प्रोफेसर भी नियुक्त  किये गए हैं जो लोगन को हिंदी पढ़ाते हैं। हिंदी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए कई देश हिंदी  को अपने यहां नियुक्ति पर रख रहे हैं इससे हिंदी अनुवादक व दुभाषियों को रोजगार मिलने की संभावना बढ़ रही है।


इंटरनेट पर बोलबाला

हिंदी का प्रचार प्रसार सोशल मीडिया और तकनीकी माध्यमों से भी हो रहा है. साथ ही हिंदी के लिए कई वेबसाइटें भी हैं जो हिंदी को प्राथमिकता देती हैं.माइक्रोसॉफ्ट, गूगल व आइबीएम, फेसबुक जैसी कंपनियां हिंदी के बाजार को देखते हुए हिंदी को बढ़ावा दे रही हैं. ई-मेल, ई-कॉमर्स, एसएमएस एवं अन्य इंटरनेट सेवाओं के इस्तेमाल के लिए हिंदी भाषा को भी प्रमुख विकल्प बनाया गया है।


 14 सितंबर हो हिंदी दिवस 

भारतीय संविधान ने 14 सितंबर 1949 में  हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया था, जिसके बाद भारत में हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।


हिंदी के रोचक तथ्य जो आपको जरूर जानना चाहिए

  • -आपको जान कर ताज्जुब होगा कि चाइना के बाद हिंदी ही विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
  • -हमारे देश के 77% लोग हिंदी लिखते, पढ़ते, बोलते और समझते हैं, हिंदी ही उनके कामकाज का भी हिस्‍सा है।
  • - हिंदी में 'नमस्‍ते' ऐसा शब्‍द है जिसे सर्वाधिक बार बोला जाता है। एक अनुमान के अनुसार हर पांच में से एक व्‍यक्ति हिंदी में इंटरनेट का उपयोग करता है।
  • -हिंदी भाषा सीखने के लिहाज से अन्य भाषाओं की तुलना में बेहद ही आसान और दिलचस्प है।
  • -हिंदी में शब्दों का वही उच्चारण होता है, जो लिखा जाता है।
  • - ब्रिटेन की लंदन कैंब्रिज और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी र्में हिंदी पढ़ाई जाती है।
  • - चीन में 1942 में हिंदी अध्ययन शुरू। 1957 में हिंदी रचनाओं का चीनी में अनुवाद कार्य आरंभ हुआ।
  • -हिंदी में एक शब्द के कई अर्थ होते हैं, जैसे हिंदी में ‘हरि’ एक ऐसा शब्द है, जिसके दर्जन भर से भी अधिक अर्थ हैं- जैसे यमराज, पवन, इन्द्र, चन्द्र, सूर्य, विष्णु, सिंह, किरण, घोड़ा, तोता, सांप, वानर और मेंढक, वायु, उपेन्द्र आदि।

(source : youtube)

हाशिये पर हिंदी

हिंदी आज अपनों के बीच बेगानी हो गयी है। इसके साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि हिंदी को लगातार हाशिये पर धकेला जा रहा है। ग्लोबलाइटेशन के कारण भी हिंदी के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। अधिक दुःख की बात है कि कुछ लोग आधुनिकता की दौड़ में हिंदी बोलने में संकोच करते हैं यही नहीं हमारे देश के बड़े बड़े नेताओं को भी हिंदी बोलना नहीं आता हैं। यह बेहद अफ़सोस की बात है ख़ास कर उस समय जब विदेशों में भी हमारी राष्ट्रभाषा का प्रभाव दिनोदिन बढ़ता जा रहा है।

यह भी पढ़ें : हिंदी दिवस विशेष - हिंदी हैं हम वतन के, हिन्दोस्तां हमारा


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