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'कोरोना चलेगा लेकिन राजनीति नहीं'

विपक्ष की निष्क्रियता और सरकार की लापरवाही से राज्य में कोरोना का संकट काफी गहरा गया। जब सरकार की आलोचना होने लगी तब जाकर विपक्ष फिर सक्रिय हो उठा।

'कोरोना चलेगा लेकिन राजनीति नहीं'
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कुछ दिनों पहले, राज्य में विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस (devendra fadnavis) द्वारा दिये गए एक इंटरव्यूह से खुद को सुर्खियों में लाने की भरकस कोशिश की। इस इंटरव्यूह में फड़णवीस ने शिवसेना (shiv sena) के सत्ता में आने से पहले महाराष्ट्र में जो 35 दिन तक राजनीतिक खेल चला था उसके बारे में बताया।मजे की बात यह है कि इस इंटरव्यूह में देवेंद्र फड़णवीस ने जिस तरह से अजित पवार (ajit pawar) और शरद पवार (sharad pawar) की भूमिकाओं को सामने लाया उससे उन्होंने पवार परिवार को परेशानी में डालने की कोशिश की।

उनके बयान के बाद मीडिया ने दोनों पवार (शरद पवार और अजित पवार) से, लेकिन किसी ने कुछ नहीं बोला ... लेकिन इससे पहले, केवल एक बीजेपी के विधायक गोपीचंद पडलकर (MLA Holi chand padakar) ने विवादित बयान देते हुए शरद पवार जैसे दिग्गज नेता को महाराष्ट्र का कोरोना (sharad pawar is corinavirus of maharashtra) वायरस बता दिया।

हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है कि किसी ने शरद पवार पर विवादित टिप्पणी की हो और यह भी कोई पहली बार नहीं है कि पवार ने ऐसे कभी किसी आलोचक को जवाब दिया हो। इसके पहले भी बालठाकरेे (bal thackeray) जैसे दिग्गज नेताओं ने भी पवार पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, लेकिन पवार हमेशा की तरह शांत रहे और कार्यकर्ताओं को भी शांत रखा।  लेकिन इस बार, नजारा थोड़ा बदला हुआ दिख रहा है।

पवार और पडलकर इस खबर को मराठी समाचार चैनलों ने भी खूब उछाला। दो दिनों तक मराठी चैनलों ने पडलकर और पावर की फोटो को एक साथ रखकर खूब TRP बटोरने की कोशिश की। मतलब एक तरह से पडलकर को न्यूज़ चैनलों ने पवार के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया था।

मजेदार बात यह है कि फडणवीस के तथाकथित बयान के दूसरे दिन सुबह ही अजीतदादा पवार (ajit pawar), शरद पवार (sharad pawar) से मिलने उनके बंगले सिल्वर ओक पहुंच गए, इस बात को कुछ समाचार चैनलों ने में भी दिखाया गया था।  लेकिन फिर उस खबर का क्या हुआ यह कोई नहीं जानता।

 इन सभी राजनीतिक घटनाक्रमों को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि फड़नवीस को पवार को समझने में समय लगेगा। कहा जा रहा है कि जब से फड़णवीस की मुख्यमंत्री की कुर्सी गई तभी से उनकी तबियत ठीक नहीं है। इसलिए वे आए दिन इस तीन पैरों वाली सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

फडणवीस को पहले ही अपनी राजनीति के बारे में सोचना चाहिए था।  लेकिन, अभी समय नहीं बीता है।  यह अक्सर कहा जाता है कि शरद पवार राज्य की राजनीति के एक मंझे हुए खिलाड़ी हैं। यह सब ध्यान में रखते हुए, फड़नवीस को अखाड़े में प्रवेश करना चाहिए था।  इसलिए, यह कहा जा सकता है कि वे इस बार भी अपनी पकड़ से आसानी से बच गए।

हालांकि, यह फडणवीस के राजनीतिक युद्धाभ्यास में अपनी ही पार्टी से समर्थन नहीं मिलने की तस्वीर भी पेश करता है। पडलकर जैसे नेता के अनचाहे बयान हो या फिर उस बयान के कारण फड़णवीस द्वारा बचाव करना, अन्य नेताओं की भी सहानुभूति पवार के तरह जाना, एक तरह से बीजेपी (BJP) को मात खानी पड़ी। इसीलिए बेहतर है कि वे पवार के सामने आने से पहले अपनी ही पार्टी के नेताओं को संभाले ताकि उनकी वजह से शर्मिंदा न होना पड़े।

कोरोना (Covid-19) संकट के दौरान, विपक्ष को शुरू से ही ठाकरे सरकार के साथ सहयोग करने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन इसके बजाय, विपक्ष ने मदद कम राजनीति अधिक की। विपक्ष की निष्क्रियता और सरकार की लापरवाही से राज्य में कोरोना का संकट काफी गहरा गया। जब सरकार की आलोचना होने लगी तब जाकर विपक्ष फिर सक्रिय हो उठा।

हालांकि, तब तक विपक्ष अपनी विश्वसनीयता खो चुका था।  इसलिए, अब कोरोना काल के दौरान दोनों पक्षों की राजनीति फलफूल रही है।

 कभी उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) सरकार के लिए सहानुभूति पैदा करने के लिए सरकारी पीआर और सोशल मीडिया (social media) का सहारा लेते हैं तो कभी विपक्ष सरकार से आगे दिखाई देते हैं, लेकिन इस संकट की घड़ी में राज्य को शरद पवार जैसा जुझारू, अनुभवी जैसा नेता नहीं दिख रहा है जो महाराष्ट्र को विकास की डगर पर आगे बढ़ा सके। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि, 'कोरोना चलेगा लेकिन राजनीति' नहीं।

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